प्यार की जख्मों को
प्यार के ज़ख्मों पे मरहम लगाने कोई नहीं था
दिल में दर्द छुपा था, बताने कोई नहीं था।
आँखों में समंदर था, पर दिखाया नहीं किसी को
भीगी पलकों का हाल सुनाने कोई नहीं था।
तूने दिया था ग़म, और वो भी छुपा के रखा
उसी दर्द में मिठास, समझाने कोई नहीं था।
खामोश रातें भी बस तेरी यादें लाती थीं
रोते दिल को फिर से बहलाने कोई नहीं था।
घायल थे हम अंदर से, पर मुस्कान लगाए रहे
उस मासूमियत का राज़ जानने कोई नहीं था।
जी आर कवियूर
16 10 2024
No comments:
Post a Comment