Wednesday, October 16, 2024

प्यार की जख्मों को

प्यार की जख्मों को 


प्यार के ज़ख्मों पे मरहम लगाने कोई नहीं था
दिल में दर्द छुपा था, बताने कोई नहीं था।

आँखों में समंदर था, पर दिखाया नहीं किसी को
भीगी पलकों का हाल सुनाने कोई नहीं था।

तूने दिया था ग़म, और वो भी छुपा के रखा
उसी दर्द में मिठास, समझाने कोई नहीं था।

खामोश रातें भी बस तेरी यादें लाती थीं
रोते दिल को फिर से बहलाने कोई नहीं था।

घायल थे हम अंदर से, पर मुस्कान लगाए रहे
उस मासूमियत का राज़ जानने कोई नहीं था।

जी आर कवियूर
16 10 2024

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