Saturday, October 5, 2024

फिर से जीने को चाहूं

फिर से जीने को चाहूं

पुरानी यादों को समेटने की
प्रयास में सोचता रहा तेरे बारे में  
उसे बीती हुई लम्हों की मिठास
अचानक आंखों के नगमे ग बैठl

तेरी बातों में खोया था कभी
जैसे मौसम में घुली हो नमी
वो हर एक मुलाकात का पल
अब भी दिल में जगाता है हलचल

तेरे बिना सूनी है ये राहें
हर तरफ फैली तन्हाई की बाहें
वो हंसी, वो नजरों का जादू
अब भी दिल में लिए हूं मैं यादू

तेरी धड़कन की आवाज जैसे
मेरे दिल में हो एक अहसास वैसे
वो लम्हें फिर से जीने को चाहूं
पर वक्त की रफ्तार में खो जाऊं

जी आर कवियूर
06 10 2024

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