राधा ने कन्हैया से कहा, बांसुरी तुम फिर बजाओ,
तेरी धुन में खो जाऊँ, आत्मा से आत्मा मिलाओ।
सांसों में तेरी बसी थी, वो मोहक प्यारी धुन,
सुनते-सुनते खो गई, टूट गया ये जीवन।
अमर हुआ ये प्रेम, मिलन का वो अंतिम पल,
बांसुरी की गूंज में, लहराया संगत का जल।
कन्हैया ने देखा राधा को, एक पल में दूर जाते,
प्रेम में रो पड़े वो, अश्रु बहे अनायास।
फिर तोड़ी उस बांसुरी को, टुकड़ों में यूं बिखेर दी,
राधा के बिना कन्हैया ने, कभी उसे न छूने की कसम दी।
अब बस स्मृति में है
वो धुन, वो राग, और प्रेम का संवाद,
राधा संग कन्हैया का, अमर प्रेम का आलाप।
जी आर कवियूर
25 10 2024
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