Thursday, October 24, 2024

जब कभी दिल की लबों पे

जब कभी दिल की लबों पे 


जब कभी दिल की लबों पे,
सपनों की परछाईं सी आई,
राहें अनहोनी पे मिली अचानक,
जैसे बिजलियाँ चमकी निगाहों में।

फिर दिल की ख़ामोशियों में,
चुपके से उठी एक मौज,
लबों पे रुकी, धुन सी बही,
महफ़िल में साज़ बनकर गूंजी।

तेरी चुप्पी में थी वो आवाज़,
जिसने दिल को छू लिया,
बिन कहे भी बहुत कुछ कहा,
रात का हर पल महका दिया।

हर लम्हे में छिपा कोई राज़ था,
आँखों ने जो अनकही कहानी लिखी,
वो एहसास, जिसे मैं कह न सका,
शब्दों में घुलकर ग़ज़ल बन गया।


जी आर कवियूर
24 10 2024


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