Tuesday, April 29, 2025

एकांत विचार – 22

एकांत विचार – 22

कभी भुलाए न जाने वाले,
आँखों के आँसुओं जैसे मन में घूमते हैं।
एक मुस्कान की छाया की तरह,
उसकी मौजूदगी बनी रहती है।

जब आँखें चुपचाप इंतज़ार करती हैं,
सपनों में वो पास आता है।
आहों में छिपी एक आवाज़ बनकर,
दिल किसी को तड़पकर चाहता है।

जब बिना छुए दूर चला जाए,
तो दिल की अनकही पीड़ा बन जाता है।
अगर यादों में ही छिप जाए वो,
तो दिन में भी रात जैसा लगता है।

जी आर कवियुर 
३० ०४ २०२५

एकांत विचार – 21



एकांत विचार – 21

जब हम खोलते हैं
पुराने दिनों में छिपी स्मृतियों की किताब,
विचार फिर से भटकने लगते हैं
उन बीते रास्तों की ओर, जैसे बंधन टूट गया हो।

बदला हुआ समय जब सामने आता है,
नए पाठ चुपचाप इंतज़ार करते हैं,
एक नई रोशनी आशा के साथ पुकारती है —
विचारों को उड़ने के लिए पंख चाहिए।

जो अदृश्य है उसे देखने के लिए
आंखों को खुला रखना ज़रूरी है,
नए दृष्टिकोण की रोशनी में
जीवन को नई पंक्तियां चाहिए।

विचार बदलो — दिशा अपने आप बदल जाएगी।

जी आर कवियुर 
३० ०४ २०२५

मेरा दिल है,(ग़ज़ल)

मेरा दिल है,(ग़ज़ल)

शीशा नहीं, पत्थर नहीं — ये मेरा दिल है,
चीरो नहीं — ये दिल मलमल का रूमाल नहीं है।

तेरे इश्क़ में मैंने खुद को खो दिया है,
अब कोई नहीं, सिर्फ़ तेरा सवाल नहीं है।

इश्क़ में दिल तोड़ने की तो बात ही नहीं,
यह दिल कोई खिलौना नहीं, बेमिसाल नहीं है।

मुझे तो हर एक पल में तेरा ही ख्याल है,
कभी न टूटे ये धड़कन, कोई ख़तरा नहीं है।

बिखरने को था, फिर भी एक किया जज़्बा,
यह दिल अब टूटेगा नहीं, कोई जंजाल नहीं है।

चीरो नहीं — ये दिल मलमल का रूमाल नहीं है,
अब 'जी आर' कहता है, यह प्यार कोई ख्वाब नहीं है।

जी आर कवियूर 
३० ०४ २०२५

तेरे लिए (ग़ज़ल)

तेरे लिए (ग़ज़ल)

इंतज़ार किया है क़यामत तक तेरे लिए,
यादों में जीते हैं, फ़रियाद तेरे लिए।

हर सांस ने तुझको पुकारा है रातों में,
बुझते नहीं हैं ये हालात तेरे लिए।

मौसम सभी गुज़रे हैं तन्हाई में मगर,
महकता रहा दिल का साथ तेरे लिए।

आँखों में ठहरी हैं तस्वीरें पुरानी,
लिखते रहे हम जज़्बात तेरे लिए।

ख़्वाबों में तू हर घड़ी मुस्कराए,
जैसे खुदा की हो सौगात तेरे लिए।

चाहत है बस इक दीदार की अब 'जी आर',
जीते हैं यूँ ही हर बात तेरे लिए।

जी आर कवियूर 
३० ०४ २०२५

Monday, April 28, 2025

एकांत विचार – 20

एकांत विचार – 20

निश्‍चलता के भीतर जागता है
एक सूक्ष्म दिव्य स्पंदन,
सीमाएँ तोड़कर मुस्कुराता है
नई रातों को बुलाता है।

बिना रंग के चमकता है
कुछ प्रेम के कण गिरते हैं,
आंसुओं की छाया में गाता है
आशा की किरणें खिलती हैं।

आंखों की दूरी घटती है
बिना पंखों की हवा स्नेह करती है,
अंतिम रेखाएँ धुंधली पड़ती हैं
हृदय की धड़कन में सपने बिखरते हैं।

जी आर कवियुर 
२९ ०४ २०२५

एकांत विचार – 19

एकांत विचार – 19

परिवार संग धैर्य, प्रेम की भाषा
साथियों संग सहनशीलता, सम्मान की वाणी
अपने दिल संग उम्मीद, आत्मविश्वास का मुकुट
ईश्वर संग प्रतीक्षा, विश्वास की रौशनी

शब्दों से परे बिखरता मधुर सन्नाटा
धैर्य का फूल महकता मीठी खुशबू से
ह्रदय की धुन में झलकता आभार
आशा की राह पर एक छोटी विश्रांति

बिना जल्दबाज़ी के बहता संदेश
प्रेम से गूँजती मधुर पुकार
विश्वास से पलती करुणा
जीवन को देती दिव्य प्रकाश

जी आर कवियुर 
२९ ०४ २०२५


Sunday, April 27, 2025

इंतज़ार की राह में ( ग़ज़ल)

इंतज़ार की राह में ( ग़ज़ल)



उम्र भर तेरी इंतज़ार में दिन-रात एक कर दिए,
आज भी निगाहों में तेरी याद एक कर दिए।

तेरे बिना हर सांस अधूरी सी लगने लगी,
चाहत की सारी मंज़िलें बेमकसद कर दिए।

चाँदनी रातें भी तेरे बिना वीरान रहीं,
दिल के उजाले तेरे बिना बरबाद कर दिए।

तेरी हँसी की एक झलक को तरसते रहे,
अश्कों की बारात से हर जश्न ख़ामोश कर दिए।

तन्हाईयों की गोद में हम रोते ही रहे,
ख़्वाब तेरे सहारे जगा के बर्बाद कर दिए।

'जी आर' ने तेरे इश्क़ में खुद को भुला दिया,
हर खुशी, हर ग़म तेरी याद में एक कर दिए।

जी आर कवियूर 
२८ ०४ २०२५

तेरी खुशबू (ग़ज़ल)

तेरी खुशबू (ग़ज़ल)

साँसों में तेरी खुशबू है,
हर धड़कन में तेरा जादू है।

चुपके से तू आती है,
हवाओं में मीठा सुकून लाती है।

तेरी हँसी की रोशनी में,
मेरे सपनों की दुनिया सजती है।

रातों को चाँद से तेरा नाम लिया,
आँखों में तेरी तस्वीर जगा ली।

तेरे बिना जो वीरानी थी,
तेरी यादों ने उसे गुलज़ार किया।

'जी आर' हर पल तुझमें खोया है,
तेरी यादों में हर साँस रोया है।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
२८ ०४ २०२५

Saturday, April 26, 2025

एकांत विचार – 18:

एकांत विचार – 18: 

कविता, मेरी सुविधा और दवाइयाँ"

कविता मेरी चाय का प्याला है,
यह मेरी आत्मा का सांत्वना है।
यह मेरी विश्वासपात्र भी है,
और कभी कभी दवा भी।

यह मेरे कानों में धीरे से बड़बड़ाती है,
जब चुप्प की आवाज़ ज्यादा तीव्र होती है।
यह बिना शब्दों के सुनती है,
और आराम से पास आती है।

यह मेरा साथी है जब मैं खो जाता हूँ,
अंधेरे में एक रोशनी।
यह बिना किसी कीमत के मुझे ठीक करती है,
एक शरण जो बिना किसी सीमा के है।

जी आर कवियूर 
२५ ०४ २०२५

Friday, April 25, 2025

ग़ज़ल — दिल यूँ ही मचलता गया

ग़ज़ल — दिल यूँ ही मचलता गया

दिल यूँ ही मचलता गया,
हर धड़कन तेरा नाम कहता गया।

तेरी याद आई तो आंखें भी भीगीं,
हर आंसू कोई राज कहता गया।

तेरे जाने के बाद भी हर घड़ी,
तेरी आहट का भ्रम बनता गया।

चाँदनी में तेरा ही चेहरा दिखा,
हर साया तुझे ही दिखता गया।

सफ़र तन्हा था, मगर दिल को ये था,
तेरा साया भी साथ चलता गया।

अब ‘जी आर’ को तन्हाई प्यारी लगी,
ग़मों को वो अपना कहता गया।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
२५ ०४ २०२५


Thursday, April 24, 2025

ग़ज़ल : "तेरे बिना जीना"

ग़ज़ल : "तेरे बिना जीना"

तेरे बिना जीना बहुत दुश्वार है,
तेरी यादों में ही मेरा संसार है।

हर शाम तुझे सोच के रोता रहा,
दिल को न तेरा साथ मिला, न करार है।

ख़्वाबों में आती है तू हर रात को,
नींदों से भी अब मेरा क्या प्यार है।

तेरी हँसी अब भी है दिल में बसी,
वो पल, वो ख्वाहिशें, वो सजीव़ अहसास हैं।

तेरे जाने के बाद भी हर तरफ़ तेरा असर है,
हर साया, हर हवा तुझसे बेज़ार है।

‘जी आर’ तुझे भूल न पाएंगे हम,
तेरी मोहब्बत ही हमारी पहचान है।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
२५ ०४ २०२५

एकांत विचार – 17

एकांत विचार – 17

जीवन दिखाता है सपनों की राह,
समय बताता है पल की सच्ची चाह।
हर सुबह उम्मीदों से भर जाती है,
सच्ची कोशिश से मंज़िल मिल जाती है।

एक पल भी चमक सकता है खास,
मौन भी सिखाता है कुछ अनमोल बात।
आगे बढ़ने को चाहिए हिम्मत,
बीती यादें दिखाती हैं मंज़िल की झलक।

सांझ में होती है पीड़ा और शांति,
सूर्योदय लाता है नई आशा की बात।
जीवन के पाठ कभी मत भूलो,
सपनों में सच्चे अर्थ को खोजो।

जी आर कवियूर 
२५ ०४ २०२५

एकांत विचार – 15 (पहलगाम: आंसुओं की घाटी)

एकांत विचार – 15
(पहलगाम: आंसुओं की घाटी)

पहलगाम की घाटी रोई,
चुप्पी में भी चीखें खोई।

गरीबों की दुआ लुटी,
नफरत ने जानें छिनी।

पैंट उतारे, नाम लिया,
मजहब पर वार किया।

गोलियाँ धर्म ना जानें,
पर इंसान बँटवारा माने।

घाटी आज भी काँपती है,
इंसानियत कहीं सोती है।

जी आर कवियूर 
२४ ०४ २०२५

एकांत विचार – 16

एकांत विचार – 16

(गर्मी की लहर: एक सरल संदेश)

चारों ओर गर्म हवाएँ चल रही हैं,
धूप तेज है, पानी सूख रहा है।
बिना छत वाले लोग परेशान हैं,
एक बूँद पानी को तरस रहे हैं।

भगवान ने हमें पानी का वरदान दिया है,
हर बूँद को संभालकर रखना चाहिए।
धीरे-धीरे पिएँ, जीवन बचाएँ,
साफ़ पानी सबको मिलना चाहिए।

नदियों और कुओं की रक्षा करें,
पेड़ लगाएँ, छाया फैलाएँ।
पृथ्वी को प्यार करें और बचाएँ,
हमारा भविष्य उसी पर निर्भर है।

जी आर कवियूर 
२५ ०४ २०२५

Wednesday, April 23, 2025

एकांत विचार – 14

एकांत विचार – 14

जब हम पूछते हैं "क्या मैं कर सकता हूँ?" तो राहें धुंधली सी लगती हैं,
डर की हवा में भीगे सपने पीछे छिप जाते हैं।

"मैं कर सकता हूँ" कहना एक रौशनी बन जाता है,
यह सोच की गहराई में ताकत भर देता है।

हम हमेशा विचारों को सपना बनाने की जल्दी में रहते हैं,
डर की गरज में भटकना नहीं चाहिए।

शक्ति हमारे भीतर ही है — इसे समझना जरूरी है,
निराशा को आत्मविश्वास से हराओ।

"क्या मैं कर सकता हूँ?" जैसे संदेह के पीछे हम नहीं,
हम हैं "मैं कर सकता हूँ" की आत्मशक्ति।

एक बार निर्णय ले लिया तो रास्ते खुलने लगते हैं,
शब्द की ताकत को समझने वाला वह पल खास बन जाता है।

जी आर कवियूर 
२३ ०४ २०२५

Tuesday, April 22, 2025

एकांत विचार – 13

एकांत विचार – 13

जब हम दूसरों को खुश करने लगते हैं,
तो अपना सुख खो बैठते हैं।
उनकी राय के पीछे भागते हुए
हम अपना रास्ता भुला देते हैं।

मन की शांति सबसे ज़रूरी है,
बाहरी दिखावे की ज़रूरत नहीं।
आशाएँ जब चाँदनी सी ढल जाएँ,
सपनों को खुद के लिए सजाएँ।

अगर उनके होठ मुस्काएँ भी,
दिल टूटे तो कौन जाने?
सच के साथ जीना ही
असली शांति का रास्ता है।

जी आर कवियूर 
२२ ०४ २०२५

एकांत विचार – 12

एकांत विचार – 12

जब उंगलियाँ थककर रुक जाती हैं,
तकिया चुपचाप आंसुओं को समेटता है।
आँखों में अटके सपने,
खामोशी में बन जाते हैं ठंडी बूंदें।

बोल न सकी बातें,
कानों तक पहुँचे बिना गिर जाती हैं।
सिर्फ़ सन्नाटा दर्द को उठाए चलता है,
और पीड़ा का रंग धीरे-धीरे गहराता है।

बिना माँगे ही रोशनी ढल जाती है,
सूरज भी चुपचाप ढल जाता है।
सिर्फ़ रात बनती है साथी,
आत्मा के दुःख को थामे रहती है।

जी आर कवियूर 
२२ ०४ २०२५

Monday, April 21, 2025

एकांत विचार – 11

एकांत विचार – 11 

शब्दों से पन्ना भरने को कलम उठाई,
सोचों में डूबी कुछ पंक्तियाँ लिखी गईं।
दुख में डूबा दिल का एक हिस्सा
अक्षरों के सहारे किनारे तक पहुँचा।

कभी वो शब्द प्रेम से महकते थे,
अब खामोशी से लुढ़कते हैं नीचे।
नए सपने थे कभी बिलकुल पारदर्शी,
पर दिल को उनका दर्द समझ न आया।

जब आँसू और नज़र मिल गए,
लिखी हुई पंक्तियाँ फीकी पड़ गईं।
कलम हाथ से गिरते ही बेबस
कागज़ ही था जो कूड़ेदान में गया।

जी आर कवियूर 
२१ ०४ २०२५

ग़ज़ल : यादें की ख़ुशबू

ग़ज़ल : यादें की ख़ुशबू


तेरी यादों की खुशबू बसी है मुझमें,
हर घड़ी तेरा एहसास रहता है मन में।

छू गई दिल को तन्हाई तेरे ग़म में,
भीगते हैं ख़यालात हर एक छन में।

लब खामोश हैं, पर दिल की हर बात में,
तेरा नाम ही उभरे हर इक जज़्बात में।

हर तरफ़ बस तेरा अक्स नज़र आता है,
जैसे कोई दीप हो साँझ के साथ में।

मैंने जब भी अकेले में आँसू बहाए,
तेरा चेहरा उभरा हर इक बरसात में।

अब "जी आर" तुझसे कोई शिकवा नहीं,
तेरी यादें ही हैं मेरी सौगात में।


जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
२२ ०४ २०२५

Sunday, April 20, 2025

ग़ज़ल : तेरी यादें

ग़ज़ल : तेरी यादें

तेरी यादें ग़ज़ल बनकर मुझमें उतर रही हैं,
महफ़िल में तू ख़ुशबू बनकर बिखर रही है।

हर साज़ की धुन में तेरी ही बात चल रही है,
मन की हर एक लहर तुझसे ही मिल रही है।

तेरी तस्वीर आँखों में हर पल सँवर रही है,
हर दिन की पहली किरण तुझको ही छू रही है।

तेरा नाम जुबां पर जैसे कोई गीत बन रही है,
हर सांस में तेरी मधुर याद बस रही है।

जिस राह पे चलूँ मैं, तेरा निशान दिख रहा है,
छाया सी तू मेरे संग हर पल चल रही है।

"जी आर" के मन में अब भी तू ही बसी रही है,
तेरी यादों की बात हर दिल से जुड़ रही है।


जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
20 -04-2025


Saturday, April 19, 2025

ग़ज़ल : तेरी याद सताए

ग़ज़ल : तेरी याद सताए 


हर पल तुझी को हमने बुलाए,
तेरी याद हमें फिर सताए।

ख़ामोशियाँ जब पास आए,
तेरी आवाज़ दिल को बहलाए।

जज़्बात नज़रों में उतर आए,
तस्वीरें तेरी रंगों में समाए।

तेरे बिना ये शाम डराए,
रातों को चाँद भी मुँह छुपाए।

हमने जिसे हर बात बताए,
वो आज ग़ैरों को अपना बनाए।

‘जीआर’ के हर सांस में तू समाए,
इश्क़ तेरा अब तक क्यों सताए?


जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
20 -04-2025

एकांत विचार – 06 से 10 तक


एकांत विचार – 06

जो तुम मानते हो, उसपर संदेह मत करो,
आत्मविश्वास को मज़बूती से थामे रहो।
तुम्हारे सपने ही तुम्हारा रास्ता हैं,
अगर रास्ता उलझे तो भी आगे बढ़ो।

दुख आए तो पीछे मत देखो,
साहस ही सफलता की कुंजी है।
तुम और तुम्हारे फैसले ही भविष्य बनाते हैं,
विचारों से जीवन की दिशा तय होती है।

याद रखना — प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता,
हर कोशिश अनमोल होती है।
पीछे हटना नहीं, भटकना नहीं,
पूरा दिल लगाओ — वही सच्चा सुकून देता है।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५


एकांत विचार – 07



तेरे मन की लय में ही ईश्वर गाता है,
सच्चाई भीतर की शांति में खिलती है।
तेरी आत्मा ही साक्षी है इस जीवन की,
टूटे विचारों के पार भी रौशनी रहती है।

जो प्रकाश दिखे नहीं, वो भी बँटता है,
कुछ अनुभव शब्दों में कहे नहीं जाते।
जब तू खुद में अपनी रोशनी पहचानता है,
हर कठिनाई आसान लगने लगती है।

रास्ते बदलते रहें तो भी रुक मत,
चिंताओं में भी आगे बढ़ता जा।
"तत्वमसि" — तू वही है ये जानकर,
पूरा जीवन एक प्रकाशमय राह बन जाता है।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५

एकांत विचार – 08

(शब्दों की राह में)

शब्द बने भोजन, आत्मा तृप्त हो गई,
कविता के कणों में समय कहीं खो गया।
ध्वनियाँ दिल में धीरे से उतर गईं,
अब तो ख़ामोशी भी अर्थ कहने लगी।

शब्दों में गर्मी होती है — वे चेतना को जगाते हैं,
एक पंक्ति ही काफी है दिल को पिघलाने के लिए।
अनदेखी भावनाएँ बंजर ज़मीन में खिल उठती हैं,
मानो सपनों को पंख लग जाते हैं।

जब जीवन एक अनकही कथा बन जाए,
कविता आत्मा का दर्पण बन जाती है।
स्मृतियाँ सुरों में बहने लगती हैं,
शब्दों की राह में मैं बस एक यात्री हूँ…

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५


एकांत विचार – 09

जब कोई साथ नहीं होता,
विचार अपनी जड़ें ढूंढ़ते हैं।
चुप्पी की गहराई में ही,
दर्द धीरे से उग आता है।

नीले आसमान जैसा ही,
अकेलापन भारी हो जाता है।
जो एक पल भी संघर्ष करते हैं,
जीत उन्हें नया वादा देती है।

जो राहें खो चुके हैं,
वहीं यादें बनती हैं सीख।
भूख सहकर जिए पल,
सपनों की नींव रखते हैं।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५


एकांत विचार – 10

शब्द उठते हैं
एक शांत रात के बीच.
एक मन भटकता है
जिसे दिशा का होश नहीं,
केवल एक परछाई के पीछे
जिसे और कोई नहीं देख पाता।

कमरे में शांति है,
पर कहीं भीतर
एक आवाज़ जन्म लेती है —
धीमी, अनजानी,
फिर भी टालना मुश्किल।

क़दमों की आहटें छूट जाती हैं,
चेहरे पन्नों के बीच धुंधले हो जाते हैं।
समुद्र खारा है,
पर जब प्यास आत्मा की हो,
तो वही नमक भी
पानी जैसा लगता है।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५

"मौन के गहराई में

"मौन के गहराई में

क्या मौन अब एक सागर बनता जा रहा है?
जब जीवन की धार में मैं बहता हूँ,
क्या मृत्यु में रक्त की भीनी सी गंध है?
डर और उम्मीदें आमने-सामने खड़ी हैं।

इंद्रधनुष के रंग अब फीके लगते हैं,
सपनों की छाया धुंधली होती जाती है,
प्रेम कुछ दूर, ओझल सा लगता है —
दिल थककर चुप न हो जाए कहीं?

जब मुस्कान में पीड़ा का रंग घुल जाए,
मन एक आह से हल्का होना चाहता है।
स्मृतियों की लहरों में गहराई तक डूबा,
मैं अनंत के पथ पर भटक रहा हूँ,
खुद को — उस पहेली को — पहचानने की कोशिश में।

— जी. आर. कवियूर
20-04-2025

Friday, April 18, 2025

एकांत विचार – 05

एकांत विचार – 05

चाँद की ख़ामोशी या उसकी कोमल रौशनी,
सिर्फ आँखों के लिए नहीं, दिल से महसूस होती है।
हवा की लय हमेशा सुनाई नहीं देती,
पर दिल उसकी धुन को पकड़ लेता है।

जब फूल दिन में खुशबू फैलाता है,
आनंद बिना देखे ही आता है।
जब करुणा कोमल शब्दों से बहती है,
तो वो सिर्फ आत्मा में चमकती है।

क्षण की मिठास छूने में नहीं होती,
बल्कि एक उम्मीद में छुपी रहती है।
प्यार की जड़ पंक्तियों के बीच छिपी होती है,
और धीरे से दिल की राह दिखाती है।

जी आर कवियूर 
१८ ०४ २०२५


एकांत विचार – 04

एकांत विचार – 04

भविष्य और बीता कल,
सोच सोचकर थक जाते हैं।
आज का यह पल तोहफा है,
एक क्षण भी खोना मत।

हवा जैसा समय निकल जाएगा,
भोर में पुकारना न भूलो।
"कल" कोई वादा नहीं है,
सिर्फ "अब" ही सच्चा है।

मुस्कान और प्यार बाँटो,
दयालुता सबको दो।
जीवन एक यात्रा है मित्र,
हर दिन को आशीर्वाद मानो।


जी आर कवियूर 
१८ ०४ २०२५

Wednesday, April 16, 2025

एकांत विचार – 02

एकांत विचार – 02

दूसरों के लिए एक उपहार


जब हम दूसरों के लिए हाथ बढ़ाते हैं,
मन में अच्छाई का प्रकाश फैलता है।
एक मुस्कान, जैसे वसंत की पहली किरण, दुखों को सुकून देती है,
एक छाया चली जाती है, जैसे कोई अकेला रास्ता पार करता हो।

एक क्षण में एक जीवन को उपहार मिल सकता है,
प्रेम से, हृदय की खिड़कियाँ खुल जाती हैं।
जब हम खुशी देते हैं, हमारा हृदय प्रकाश से भर जाता है,
सहायता में, आत्मा अपने संगीत को गाती है।

विचार बदलते हैं, एक निर्दोष मुस्कान में,
शब्द बनते हैं, करुणा की भाषा,
जीवन प्यार की स्वर्णिम बारिश से सजा है,
प्रकाश की राह में, मानवता आगे बढ़ती है।

जी आर कवियूर 
१७ ०४ २०२५

Monday, April 14, 2025

तेरी यादों की वसंत बहार ( गीत)

तेरी यादों की वसंत बहार ( गीत)

तेरी यादों से ही सजता
मेरे मन का हर एक बसंत,
तेरे होंठों की मुस्कानों में
खिलते फूलों का है चमत्कृत रंग।

तेरी यादों से ही सजता
मेरे मन का हर एक बसंत।

अब भी उन एहसासों को कह न सका,
पर हर लम्हा रोमांचित करता है।
अनजाने जीवन के इस उपवन में
तेरी खुशबू तन्हाई में महकती है।

तेरी यादों से ही सजता
मेरे मन का हर एक बसंत।

दिन खिले जैसे फूलों की घाटी,
रातें तेरी परछाईं बन गईं।
चाँदनी की उस निर्मल छाया में
बीते पल धड़कनों की धुन में ढल गईं।

तेरी यादों से ही सजता
मेरे मन का हर एक बसंत।

अक्षरों में बुनता हूं तेरी बातों को,
हर कविता में छलकती है तेरी मधुरता।
जिसे किसी से कह न सका अब तक,
वो है, सुरतसुख से भी अधिक की अनुभूति।

तेरी यादों से ही सजता
मेरे मन का हर एक बसंत।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
15-04-2025

तेरी यादों की महक

तेरी यादों की महक

हर एक बात बसी है तेरी यादों में,
महकी महकी सी घड़ी है तेरी यादों में।

हथेली पे जो मेंहदी की लकीरें थीं,
अब भी है कुछ बात वही तेरी यादों में।

बहारें भी शर्माती हैं इन रंगों से,
महकती है कली कली तेरी यादों में।

जो दिल ने कभी कहा नहीं जुबाँ से,
वो सब कुछ कह गई तेरी यादों में।

नज़्में, नग़में, चुप चुप सी शामें,
हर लम्हा जी लिया मैंने तेरी यादों में।

'जी आर' ने खुद को पाया नहीं अब तक,
गुम सी है हर ग़ज़ल भी तेरी यादों में।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
14 -04-2025

Friday, April 11, 2025

क्या बताएं (ग़ज़ल)

क्या बताएं (ग़ज़ल)

दिल तो दिल ही था, मगर क्या बताएं
टूटते ख़्वाबों का असर क्या बताएं

छाँव थी आँखों में, पर धूप भी थी
उसके पहलू का सफ़र क्या बताएं

हर मुसाफ़िर को वहाँ खोना पड़ा
उस गली का ही हुनर क्या बताएं

नींद से पहले वो यादें जो आईं
उनमें छुपा था समंदर, क्या बताएं

ज़िन्दगी यूँ तो गुज़रती रही है
पर बिखरते रहे हम, क्या बताएं

‘जी. आर.’ ने चाहा उसे दिल से लेकिन
था नसीबों में जुदा, क्या बताएं

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
10 -04-2025





Tuesday, April 8, 2025

"यादों की राहें" (ग़ज़ल)

"यादों की राहें" (ग़ज़ल)

साथ तेरा कैसे छूटेगा यादों से,
गुज़रा हूँ मैं कितनी मजारों की यादों से।

हर मोड़ पर तेरा ही अक्स मिला मुझको,
बच न सका मैं इन बहारों की यादों से।

तेरे बिना सब रौनकें वीरान सी लगीं,
उलझा रहा मैं उजालों की यादों से।

नींदों में भी तेरा ही नाम पुकारा है,
रातें गुज़ारी मैंने ख्वाबों की यादों से।

जिसकी हँसी ने मुझको तनहा कर डाला,
हर पल वो ही लौटा सवालों की यादों में।

‘जी आर’ ने जो भी लिखा, तेरे ग़म में ही लिखा,
भर न सकी दिल की दरारों को यादों से।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
09 -04-2025

भारत के – एक यात्रा वसंत पर्वों की"

भारत के – एक यात्रा वसंत पर्वों की"

कण्णी के दर्शन से होता है शुभ प्रभात का आग़ाज़,
दीप, फल और फूलों से भरता हर मन का राज़।
सोने जैसा सूरज उगता, खेतों में हरियाली छाए,
घर-आँगन में प्रेम बिखेरे, जब विशु की बेला आए।
परिवार संग नववर्ष मनाएं, मंगल संदेश लाए।

इलाई पर सजे पकवान, कांसे की थाली मुस्काए,
कोलम रचें शुभ चिन्ह, जब नव पुथांडु आए।
तमिल मन में उमंग हो, जैसे कावेरी की धार,
आस्था, प्रेम, परंपरा से सजे हर त्यौहार।
हर मुख पर हो मुस्कान, हर दिल में हो त्योहार।

शक्कर-नींबू-केले संग बनता है ठंडा पना,
उड़ीसा के हर द्वार बजे नवसंक्रांति का सपना।
पवन में बहे शांति का गीत, जल में घुले मधुर भाव,
सूर्य की पहली किरण संग हो, आत्मा का अभिषेक-प्रभाव।
धरती बोले, "पवित्र हो तू", प्रेम की हो पुकार।

"शुभो नबोबर्षो!" की गूंज से उठे कोलकाता का राग,
रसगुल्ले से मीठे दिन हों, प्रेम से भरे सबके भाग।
नए बहीखाते खुलें, पुराने गिले मिटें,
कला, संगीत, मिठास में, बंगाल सजे हर क्षण।
नववर्ष का स्वागत हो, जैसे बसंत का आगमन।

पहाड़ी हवा में गूंजे जब साजिबू के स्वर,
मणिपुर के हर आँगन में दिखे मधुरातम प्रहर।
परंपरा, पूजा और उत्सव, संग-संग जीवन चले,
चावल और फूलों से सजे, मंगल की बातें कहे।
नवचेतना की सुबह में, पूर्व का हृदय खिले।

ढोल-पीपा की ताल पे जब रोंगाली गीत सजते,
रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर, नर-नारी झूमते।
गांवों में नवजीवन के स्वर, खेतों में गूंजते जयकार,
भोगाली से बिहू तक बहता है उल्लास अपार।
असम का हर कोना बोले, प्रकृति से प्यार करो यार।

जब सरसों से खेतों में सोना बरसता जाए,
भांगड़ा-गिद्दा की धुन पर पंजाब नाचे गाए।
गुरुद्वारों में लंगर बंटे, सेवा में झुके सिर,
फसलें हों या भाईचारा, सबका हो तक़दीर।
बैसाखी की रौनक में, झलके गुरुओं की तसवीर।

अलग-अलग भाषाएं हों, पर दिल की बोली एक,
त्योहारों के सुर में झलके, भारत माता की टेक।
माटी, पर्व, और प्रार्थना में बंधे हम एक सूत्र में,
"वसुधैव कुटुम्बकम्" का दर्शन हो हर संस्कृति के तंत्र में।
यह विविधता ही तो है, जो भारत को बनाती अनंत में।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
08-04-2025

Friday, April 4, 2025

प्रार्थना (श्रीराम को समर्पित — आत्मकथ्य भजन)

प्रार्थना

(श्रीराम को समर्पित — आत्मकथ्य भजन)

राम का नाम जप रे मनवा,
दिन हो या हो अंधियारा।
जब तक छाया रहे रावण की,
राम का नाम जप रे मनवा।

पत्थर में भी प्राण जगाए,
माया में सच्चाई दिखाए।
जो मेरा अन्तर्यामि है,
राम का नाम जप रे मनवा।

राम का नाम जप रे मनवा,
हर सुख-दुख में एक सहारा।
राम का नाम जप रे मनवा।

रघुनाथ का जो नाम पवित्र,
हरदम कानों में गूंजे।
माँ-बाप ने जो दर्शन पाए,
उसी भक्ति से नाम दिया मुझे।

जीवन का वरदान बना जो,
मेरा नाम भी बन गया पूजा।
राम का नाम जप रे मनवा।

संकट हरता, पथ दिखलाए,
मन की माया दूर हटाए।
प्रेम भरे स्वर में तू गा,
राम नाम से जीवन सजा।

राम का नाम जप रे मनवा,
प्रेम-पथ का एक सितारा।
राम का नाम जप रे मनवा।


जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
05-04-2025

कल रामनवमी के लिए लिखी हुई भजन

मैं और मेरे अतीत(एक पारिवारिक स्मृति-गाथा)

मैं और मेरे अतीत

(एक पारिवारिक स्मृति-गाथा)

समर्पण:
इस कविता को समर्पित करता हूँ —
अपने पूज्य पिता, श्रद्धामयी माता,
प्रिय भ्राता, जीवन संगिनी, पुत्रियों एवं
नवजन्मे दीपों को —
जिन्होंने मेरे जीवन को अर्थ और आराधना दी।




गोपालकृष्णन पिता, ज्ञान की अमिट ज्योति,
विजयलक्ष्मी माँ, भक्ति की मधुर रागिनी।
कलम से फूटा प्रेम-वचन, उपन्यास बने दीपक,
आत्मकथा में झलका जीवन का यथार्थ संगीत।

मधुसूदन नाम जिनका, मधु-सा जिनका स्वर,
कविता, योग और गान से किया अंतरिक्ष स्पर्श।
चवालीस पुस्तकों की वाणी, एक ऋषि का रूप,
कवियूर का वह पुत्र, जो बना संत स्वरूप।

और रघुनाथ — उस कुल का नामधारी,
राम नाम को जीवन की डोरी बना डाली।
पत्नी सबिता, बेटी मीरा-शालू,
रामकथा की परछाई, हर रिश्ते में भक्ति की थाली।

अब धक्ष और कृतिक, दो उजले दीपक,
जैसे तुलसीदास के भावों में फिर जन्मे शब्द।
यह वंश नहीं, यह एक गाथा है,
जहाँ हर पीढ़ी में राम जी की ही साधना है।

कविः जी आर कवियूर
(जी रघुनाथ)
05 - 04 - 2025

Thursday, April 3, 2025

खो गया (ग़ज़ल)

खो गया (ग़ज़ल)

एक इशारा तेरा पैग़ाम, समझ गया
पलकों में था जो अफ़साना, मैं खो गया

निगाहों में था जो जादू, असर हुआ
लब पर सजी जो मुस्कान, मैं खो गया

राहों में बिखरी थी शबनम, पिघल गई
सांसों में घुलता तराना, मैं खो गया

लबों से निकली जो बातें, ठहर गईं
सुनकर वो मीठा फ़साना, मैं खो गया

बाहों में लहरों-सा मर्म, सिमट गया
धड़कन में बजता तराना, मैं खो गया

नाम जी आर का अब अफ़साना, मशहूर है
तेरी दुनिया में बन दिवाना, मैं खो गया
जी आर कवियुर 
03 - 04 -2025

Tuesday, April 1, 2025

तन्हाई की राहों में (ग़ज़ल)

तन्हाई की राहों में (ग़ज़ल)

तन्हाई की राहों में भटकते रहे हर दम,
बेचैनी बढ़ी और याद आई हर दम।

अश्कों की रवानी में बहा वक्त मेरा यूँ,
हर लम्हा तेरा नाम ही लब पर रहा हर दम।

चाहत की हवाओं में जलाया था जो दीपक,
वो दर्द की आंधी में बुझा फिर गया हर दम।

खामोश निगाहों में हजारों थे फ़साने,
कोई भी मगर हाल न समझा मेरा हर दम।

वीरान थी दुनिया, न कोई हमसफ़र अपना,
बस याद तेरी साथ निभाती रही हर दम।

जी आर के अब दिल में उजाला नहीं कोई,
बस याद के साए ही सुलगते रहे हर दम।

जी आर कवियुर 
01- 04 -2025