एकांत विचार – 12
जब उंगलियाँ थककर रुक जाती हैं,
तकिया चुपचाप आंसुओं को समेटता है।
आँखों में अटके सपने,
खामोशी में बन जाते हैं ठंडी बूंदें।
बोल न सकी बातें,
कानों तक पहुँचे बिना गिर जाती हैं।
सिर्फ़ सन्नाटा दर्द को उठाए चलता है,
और पीड़ा का रंग धीरे-धीरे गहराता है।
बिना माँगे ही रोशनी ढल जाती है,
सूरज भी चुपचाप ढल जाता है।
सिर्फ़ रात बनती है साथी,
आत्मा के दुःख को थामे रहती है।
जी आर कवियूर
२२ ०४ २०२५
No comments:
Post a Comment