Thursday, April 24, 2025

एकांत विचार – 15 (पहलगाम: आंसुओं की घाटी)

एकांत विचार – 15
(पहलगाम: आंसुओं की घाटी)

पहलगाम की घाटी रोई,
चुप्पी में भी चीखें खोई।

गरीबों की दुआ लुटी,
नफरत ने जानें छिनी।

पैंट उतारे, नाम लिया,
मजहब पर वार किया।

गोलियाँ धर्म ना जानें,
पर इंसान बँटवारा माने।

घाटी आज भी काँपती है,
इंसानियत कहीं सोती है।

जी आर कवियूर 
२४ ०४ २०२५

No comments:

Post a Comment