Saturday, April 19, 2025

एकांत विचार – 06 से 10 तक


एकांत विचार – 06

जो तुम मानते हो, उसपर संदेह मत करो,
आत्मविश्वास को मज़बूती से थामे रहो।
तुम्हारे सपने ही तुम्हारा रास्ता हैं,
अगर रास्ता उलझे तो भी आगे बढ़ो।

दुख आए तो पीछे मत देखो,
साहस ही सफलता की कुंजी है।
तुम और तुम्हारे फैसले ही भविष्य बनाते हैं,
विचारों से जीवन की दिशा तय होती है।

याद रखना — प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता,
हर कोशिश अनमोल होती है।
पीछे हटना नहीं, भटकना नहीं,
पूरा दिल लगाओ — वही सच्चा सुकून देता है।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५


एकांत विचार – 07



तेरे मन की लय में ही ईश्वर गाता है,
सच्चाई भीतर की शांति में खिलती है।
तेरी आत्मा ही साक्षी है इस जीवन की,
टूटे विचारों के पार भी रौशनी रहती है।

जो प्रकाश दिखे नहीं, वो भी बँटता है,
कुछ अनुभव शब्दों में कहे नहीं जाते।
जब तू खुद में अपनी रोशनी पहचानता है,
हर कठिनाई आसान लगने लगती है।

रास्ते बदलते रहें तो भी रुक मत,
चिंताओं में भी आगे बढ़ता जा।
"तत्वमसि" — तू वही है ये जानकर,
पूरा जीवन एक प्रकाशमय राह बन जाता है।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५

एकांत विचार – 08

(शब्दों की राह में)

शब्द बने भोजन, आत्मा तृप्त हो गई,
कविता के कणों में समय कहीं खो गया।
ध्वनियाँ दिल में धीरे से उतर गईं,
अब तो ख़ामोशी भी अर्थ कहने लगी।

शब्दों में गर्मी होती है — वे चेतना को जगाते हैं,
एक पंक्ति ही काफी है दिल को पिघलाने के लिए।
अनदेखी भावनाएँ बंजर ज़मीन में खिल उठती हैं,
मानो सपनों को पंख लग जाते हैं।

जब जीवन एक अनकही कथा बन जाए,
कविता आत्मा का दर्पण बन जाती है।
स्मृतियाँ सुरों में बहने लगती हैं,
शब्दों की राह में मैं बस एक यात्री हूँ…

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५


एकांत विचार – 09

जब कोई साथ नहीं होता,
विचार अपनी जड़ें ढूंढ़ते हैं।
चुप्पी की गहराई में ही,
दर्द धीरे से उग आता है।

नीले आसमान जैसा ही,
अकेलापन भारी हो जाता है।
जो एक पल भी संघर्ष करते हैं,
जीत उन्हें नया वादा देती है।

जो राहें खो चुके हैं,
वहीं यादें बनती हैं सीख।
भूख सहकर जिए पल,
सपनों की नींव रखते हैं।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५


एकांत विचार – 10

शब्द उठते हैं
एक शांत रात के बीच.
एक मन भटकता है
जिसे दिशा का होश नहीं,
केवल एक परछाई के पीछे
जिसे और कोई नहीं देख पाता।

कमरे में शांति है,
पर कहीं भीतर
एक आवाज़ जन्म लेती है —
धीमी, अनजानी,
फिर भी टालना मुश्किल।

क़दमों की आहटें छूट जाती हैं,
चेहरे पन्नों के बीच धुंधले हो जाते हैं।
समुद्र खारा है,
पर जब प्यास आत्मा की हो,
तो वही नमक भी
पानी जैसा लगता है।

जी आर कवियूर 
१९ ०४ २०२५

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