Monday, April 14, 2025

तेरी यादों की महक

तेरी यादों की महक

हर एक बात बसी है तेरी यादों में,
महकी महकी सी घड़ी है तेरी यादों में।

हथेली पे जो मेंहदी की लकीरें थीं,
अब भी है कुछ बात वही तेरी यादों में।

बहारें भी शर्माती हैं इन रंगों से,
महकती है कली कली तेरी यादों में।

जो दिल ने कभी कहा नहीं जुबाँ से,
वो सब कुछ कह गई तेरी यादों में।

नज़्में, नग़में, चुप चुप सी शामें,
हर लम्हा जी लिया मैंने तेरी यादों में।

'जी आर' ने खुद को पाया नहीं अब तक,
गुम सी है हर ग़ज़ल भी तेरी यादों में।

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
14 -04-2025

No comments:

Post a Comment