Friday, April 4, 2025

मैं और मेरे अतीत(एक पारिवारिक स्मृति-गाथा)

मैं और मेरे अतीत

(एक पारिवारिक स्मृति-गाथा)

समर्पण:
इस कविता को समर्पित करता हूँ —
अपने पूज्य पिता, श्रद्धामयी माता,
प्रिय भ्राता, जीवन संगिनी, पुत्रियों एवं
नवजन्मे दीपों को —
जिन्होंने मेरे जीवन को अर्थ और आराधना दी।




गोपालकृष्णन पिता, ज्ञान की अमिट ज्योति,
विजयलक्ष्मी माँ, भक्ति की मधुर रागिनी।
कलम से फूटा प्रेम-वचन, उपन्यास बने दीपक,
आत्मकथा में झलका जीवन का यथार्थ संगीत।

मधुसूदन नाम जिनका, मधु-सा जिनका स्वर,
कविता, योग और गान से किया अंतरिक्ष स्पर्श।
चवालीस पुस्तकों की वाणी, एक ऋषि का रूप,
कवियूर का वह पुत्र, जो बना संत स्वरूप।

और रघुनाथ — उस कुल का नामधारी,
राम नाम को जीवन की डोरी बना डाली।
पत्नी सबिता, बेटी मीरा-शालू,
रामकथा की परछाई, हर रिश्ते में भक्ति की थाली।

अब धक्ष और कृतिक, दो उजले दीपक,
जैसे तुलसीदास के भावों में फिर जन्मे शब्द।
यह वंश नहीं, यह एक गाथा है,
जहाँ हर पीढ़ी में राम जी की ही साधना है।

कविः जी आर कवियूर
(जी रघुनाथ)
05 - 04 - 2025

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