Monday, April 28, 2025

एकांत विचार – 20

एकांत विचार – 20

निश्‍चलता के भीतर जागता है
एक सूक्ष्म दिव्य स्पंदन,
सीमाएँ तोड़कर मुस्कुराता है
नई रातों को बुलाता है।

बिना रंग के चमकता है
कुछ प्रेम के कण गिरते हैं,
आंसुओं की छाया में गाता है
आशा की किरणें खिलती हैं।

आंखों की दूरी घटती है
बिना पंखों की हवा स्नेह करती है,
अंतिम रेखाएँ धुंधली पड़ती हैं
हृदय की धड़कन में सपने बिखरते हैं।

जी आर कवियुर 
२९ ०४ २०२५

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