तेरी यादें ग़ज़ल बनकर मुझमें उतर रही हैं,
महफ़िल में तू ख़ुशबू बनकर बिखर रही है।
हर साज़ की धुन में तेरी ही बात चल रही है,
मन की हर एक लहर तुझसे ही मिल रही है।
तेरी तस्वीर आँखों में हर पल सँवर रही है,
हर दिन की पहली किरण तुझको ही छू रही है।
तेरा नाम जुबां पर जैसे कोई गीत बन रही है,
हर सांस में तेरी मधुर याद बस रही है।
जिस राह पे चलूँ मैं, तेरा निशान दिख रहा है,
छाया सी तू मेरे संग हर पल चल रही है।
"जी आर" के मन में अब भी तू ही बसी रही है,
तेरी यादों की बात हर दिल से जुड़ रही है।
जी आर कवियूर
(जी रघुनाथ)
20 -04-2025
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