तन्हाई की राहों में भटकते रहे हर दम,
बेचैनी बढ़ी और याद आई हर दम।
अश्कों की रवानी में बहा वक्त मेरा यूँ,
हर लम्हा तेरा नाम ही लब पर रहा हर दम।
चाहत की हवाओं में जलाया था जो दीपक,
वो दर्द की आंधी में बुझा फिर गया हर दम।
खामोश निगाहों में हजारों थे फ़साने,
कोई भी मगर हाल न समझा मेरा हर दम।
वीरान थी दुनिया, न कोई हमसफ़र अपना,
बस याद तेरी साथ निभाती रही हर दम।
जी आर के अब दिल में उजाला नहीं कोई,
बस याद के साए ही सुलगते रहे हर दम।
जी आर कवियुर
01- 04 -2025
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