दिल यूँ ही मचलता गया,
हर धड़कन तेरा नाम कहता गया।
तेरी याद आई तो आंखें भी भीगीं,
हर आंसू कोई राज कहता गया।
तेरे जाने के बाद भी हर घड़ी,
तेरी आहट का भ्रम बनता गया।
चाँदनी में तेरा ही चेहरा दिखा,
हर साया तुझे ही दिखता गया।
सफ़र तन्हा था, मगर दिल को ये था,
तेरा साया भी साथ चलता गया।
अब ‘जी आर’ को तन्हाई प्यारी लगी,
ग़मों को वो अपना कहता गया।
जी आर कवियूर
(जी रघुनाथ)
२५ ०४ २०२५
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