Friday, April 11, 2025

क्या बताएं (ग़ज़ल)

क्या बताएं (ग़ज़ल)

दिल तो दिल ही था, मगर क्या बताएं
टूटते ख़्वाबों का असर क्या बताएं

छाँव थी आँखों में, पर धूप भी थी
उसके पहलू का सफ़र क्या बताएं

हर मुसाफ़िर को वहाँ खोना पड़ा
उस गली का ही हुनर क्या बताएं

नींद से पहले वो यादें जो आईं
उनमें छुपा था समंदर, क्या बताएं

ज़िन्दगी यूँ तो गुज़रती रही है
पर बिखरते रहे हम, क्या बताएं

‘जी. आर.’ ने चाहा उसे दिल से लेकिन
था नसीबों में जुदा, क्या बताएं

जी आर कवियूर 
(जी रघुनाथ)
10 -04-2025





No comments:

Post a Comment