साथ तेरा कैसे छूटेगा यादों से,
गुज़रा हूँ मैं कितनी मजारों की यादों से।
हर मोड़ पर तेरा ही अक्स मिला मुझको,
बच न सका मैं इन बहारों की यादों से।
तेरे बिना सब रौनकें वीरान सी लगीं,
उलझा रहा मैं उजालों की यादों से।
नींदों में भी तेरा ही नाम पुकारा है,
रातें गुज़ारी मैंने ख्वाबों की यादों से।
जिसकी हँसी ने मुझको तनहा कर डाला,
हर पल वो ही लौटा सवालों की यादों में।
‘जी आर’ ने जो भी लिखा, तेरे ग़म में ही लिखा,
भर न सकी दिल की दरारों को यादों से।
जी आर कवियूर
(जी रघुनाथ)
09 -04-2025
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