मिलेंगे कि बिछड़ना नियति में है,
सपनों में सिमटना नियति में है।
किताबों के पन्नों में सूखा फूल,
यादों का बिखरना नियति में है।
गहराइयों से उठा कोई मोती,
या कांच में चमकी वही नियति में है।
नशे की तरह है यह चाहत मेरी,
हर सांस में घुलना नियति में है।
मधुर दर्द की भीगी रुबाइयों में,
ग़ज़ल की तरह बहना नियति में है।
दो साए जो मिलते कहीं दूर हैं,
रेतों में सिमटना नियति में है।
मिलेंगे कि बिछड़ना नियति में है,
सपनों में सिमटना नियति में है।
जी आर कवियूर
23- 02 -2025
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