सज-धज के जब तू आया सजन, क्या बहार आई
सावन भी झूम उठा, तेरी जब याद आई
बिखरी जो मेरी ज़ुल्फ़ें, घटाएँ भी गा उठीं
संग तेरे हर घड़ी, नई इक अदा आई
नज़रों में तेरा जादू, संवरने लगा बदन
जो दिल में हलचलें थीं, लबों पर दुआ आई
तू पास हो तो महके, मेरे दिल का हर गुलाब
तू दूर जाए तो फिर ये दुनिया बुझा आई
दिल में छुपी जो तड़पन, वो अश्कों में ढल गई
तेरी निगाह छूके, हमें फिर सदा आई
"जी आर" के नग़मों में, तेरा ही जिक्र है
तेरे बिना ये ग़ज़ल, अधूरी सी रह गई
जी आर कवियूर
26 - 02 -2025
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