Wednesday, February 12, 2025

तलब छाई है ( ग़ज़ल )

तलब छाई है ( ग़ज़ल )


तुझसे मिलने की हर तलब छाई है,
ज़िंदगी पर अजब अदब छाई है।

दिल की राहों में फिर चिराग जलाए हैं,
तेरी यादों का हर सबब छाई है।

तन्हा दिल को तेरा ख्याल बहलाता है,
वरना हर सोच में कष्ट छाई है।

तेरा वादा भी एक ख़्वाब सा लगता है,
सच कहूँ तो अजब ग़ज़ब छाई है।

दर्द-ए-दिल को तसल्ली मिली है तुझसे,
वरना हर ज़ख्म में तलब छाई है।

'जी आर' की ये ग़ज़ल हर दिल को छू जाएगी,
उसकी आवाज़ में भी तलब छाई है।

जी आर कवियूर
13 - 02 -2025

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