Saturday, February 8, 2025

ग़ज़ल – तू ही है

ग़ज़ल – तू ही है


सूरज की पहली किरणों में, दिखता तेरा जलवा तू ही है
चंदा की ठंडी चाँदनी में, खिलता तेरा चेहरा तू ही है

अगर मैं एक चिंगारी हूँ, तो आग बना दे साँसों में
अगर मैं कोई धड़कन हूँ, तो दिल का मेरा नग़्मा तू ही है

हर बात मेरी तेरी है, हर जज़्बात में महक तेरा
जो लफ्ज़ अधूरे लगते थे, उनका भी अब सरगम तू ही है

सूनी इन आँखों के अंदर, कुछ ख़्वाब दबे से रहते हैं
जो पलकों पर बरसते हैं, उनका भी अब मौसम तू ही है

दुनिया की भीड़ में तन्हा था, जब तेरा सहारा मिल ना सका
जो रंग भरे इस जीवन में, ऐसा कोई परछम तू ही है**

अब जी आर की बातों में, हर शेर में हर नग़्मा तू ही है

जी आर कवियूर
08 -02 -2025

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