Saturday, February 8, 2025

तेरी इन आखों में (ग़ज़ल )

तेरी इन आखों में (ग़ज़ल )


काजल जो जेल आँखों में, सावन जो ढलके आँखों में
बादल भी घुल के रोते हैं, अरमान जलके आँखों में

नज़रों से उनकी उठते ही, ख़्वाबों के गुल खिले कैसे
सूरज भी छुप गया जैसे, बादल मचलके आँखों में

यादों की भीड़ में अक्सर, तन्हाइयाँ भटकती हैं
शब ढलते ही सिसकते हैं, जज़्बात छलके आँखों में

सागर से गहरा रिश्ता है, आँसू के हर कतरे का
ग़म जब भी ज़्यादा होता है, मोती उबलके आँखों में

दिल के गुलिस्तां में अब तक, वो प्यार की ख़ुशबू बाक़ी
तूफाँ भी आए लेकिन, जज़्बात पलके आँखों में

दुनिया की भीड़ में तन्हा, चेहरा छुपा के बैठे हैं
उलझे हुए हैं कुछ सपने, और धूल जमके आँखों में

जी आर के बातों में, शायरी टपके आँखों में

जी आर कवियूर
08 -02 -2025


No comments:

Post a Comment