फिर वही बात छेड़ी है तेरी यादों की,
फिर चली है हवा तेरी यादों की।
चांदनी रात रोई मेरे संग-संग यूं,
बिखरी थी हर जगह छांव तेरी यादों की।
दिल के वीरान गलियारों में गूंजती,
सर्द आहट बनी बात तेरी यादों की।
लौट आऊं कहीं छोड़कर ये जहां,
रख ना पाई कसम रात तेरी यादों की।
अब तो जी आर भी थक सा गया है मगर,
खत्म क्यों हो न पाए घात तेरी यादों की।
जी आर कवियूर
24 - 02 -2025
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