Sunday, February 16, 2025

दिल्लगी कोई खेल नहीं (ग़ज़ल)

दिल्लगी कोई खेल नहीं (ग़ज़ल)

जज़्बात कोई खेल नहीं,
दिल्लगी कोई मेल नहीं।

रातों की नींदें उड़ गईं,
ख़्वाबों का भी रहम नहीं।

ज़ख़्म दिए जो प्यार में,
वो किसी का एहसास नहीं।

आँखों में तेरे ठहरे चमक,
अब इनमें कोई ख़्वाब नहीं।

तुझसे बिछड़ के जी लिए,
ये भी कोई कमाल नहीं।

जी आर के लफ़्ज़ों में,
इश्क़ कोई सवाल नहीं।


जी आर कवियूर
17 - 02 -2025

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