Monday, February 10, 2025

"तेरी यादों की परछाइयाँ" (ग़ज़ल)

"तेरी यादों की परछाइयाँ" (ग़ज़ल)

मेरी दर्द भरी तन्हाइयों में,
तेरी यादों की परछाइयों में।

कभी अश्कों की बूंदें छलकती रहीं,
कभी खुशबू बसी सर्द राहों में।

तेरे लफ़्ज़ों का जादू है अब तक असर,
सुनाई दिए तू सदा आहटों में।

बिछड़कर भी मुझसे जुदा तू नहीं,
मिला करता है तू मेरी बातों में।

तू ही था जिससे था रंगीन आलम,
अब वीरान हैं मेरी राहों में।

तेरी यादों का जीआर है बंज़र सफर,
बसा ले मुझे अपनी बाहों में।

जी आर कवियूर
11- 02 -2025

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