Thursday, February 6, 2025

मन की ग़मगीनियाँ ( ग़ज़ल)

मन की ग़मगीनियाँ ( ग़ज़ल)

कोई कैसे बताए उनके मन में क्या है
राज तो वही जाने, कि मन में क्या है

नज़रों में वो जो बातें बयां होती नहीं
दिल के अंदर छिपी, वो दुआं क्या है

जब लब सिल जाएं, आँखों में सवाल हो
हर जवाब में छिपा, वो खफा क्या है

दिल की ये धड़कनें क्यों डरती हैं तुम्हारे पास से
तुमसे दूर जाकर ये, कहाँ क्या है

रातों की चुप्प है जैसे कोई राज़ छुपा हो
चाँद के सन्नाटे में, क्या दुआ क्या है

जब यादों की बारिश हो, क्या फर्क है फिर फिजाओं से
जिंदगी की धड़कनें, कहां क्या है

तेरे बिना सारा जहां सुना सा लगता है
तुम्हारे अंदर जो प्यार है, वो क्या है

जी आर के जिगर में क्या है, ये राज़ तो वो जाने
दिल की बातें तो सिर्फ़ दिल में क्या है

जी आर कवियूर
06 -02 -2025

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