आग लगी है नस-नस में, तेरा नाम लिए जाते हैं,
सांसों की हर धड़कन में, तुझको हम ही पाए जाते हैं।
दर्द की शब में तन्हा रहकर, अश्कों में नहाए जाते हैं,
याद तेरी जब आती है, दिल को हम समझाए जाते हैं।
छोड़ गई जो राहों में, उसकी राह सजाए जाते हैं,
दिल का हाल सुनाने को, शेर नए बनाए जाते हैं।
टूट चुका हूँ फिर भी देखो, उम्मीद जगाए जाते हैं,
ज़ख्म पुराने सीने में हैं, फिर भी मुस्काए जाते हैं।
तेरी जफ़ाओं के चर्चे, अब तो हर महफ़िल में हैं,
हम फिर भी उस बेवफ़ा के, नग़मे ही गाए जाते हैं।
अब तो सुकूँ बस इतना चाहूँ, ख़त्म हो ये बेचैनियाँ,
वरना तुझे पाने की ख्वाहिश में, फिर से लुटाए जाते हैं।
‘जी आर’ की तक़दीर में, जो दर्द लिखा था रहमत ने,
अब उसी दर्द की चादर में, खुद को ही छुपाए जाते हैं।
जी आर कवियूर
08 -02 -2025
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