नित्य साधना के ध्यान से
जागती है मुझमें आत्मचेतना की धारा,
जानता हूं अनंत आनंद,
अनुभूति देती है पूर्णता का भाव।
अज्ञान के अंधकार को हटाकर
अंतर में प्रकाश का दीप जलता है,
मन शांति की खोज में स्थिर होता है,
असत्य से सत्य की ओर यात्रा करता है।
अविनाशी है आत्मस्वरूप,
आराधना से स्वयं प्रकट होता है,
परम है ब्रह्मसूत्र,
पंचभूत में विलीन होते पंचभूत।
प्राणायाम के अनुभव से
गहराई में फैलती है पवित्र ऊर्जा,
चैतन्य शक्ति और चिदानंद,
मोक्ष बन जाती है सम्पूर्ण सृष्टि के लिए।
जी आर कवियूर
19 - 02 -2025
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