Saturday, February 22, 2025

तेरे ख़यालों में ( गज़ाला)

तेरे ख़यालों में ( गज़ाला)

तेरे ख़यालों में जीने की तमन्ना जाग उठी,
तुझ बिन कैसे जियूँ, फिर तन्हाई जाग उठी।

जी रहा हूँ दर्द लेकर, हर घड़ी उलझा हुआ,
आरज़ू टूटी, मगर फिर से कशिश सी जाग उठी।

जीस्त वीरान हुई तेरी जुदाई के सबब,
राह तकते-तकते मेरी शाम-ए-ग़म फिर जाग उठी।

जी न पाएँगे तेरे बिन, ये ख़याल आया नहीं,
सांस भी रोकी मगर फिर हिचकियाँ सब जाग उठी।

जीने की हालत न थी, फिर भी तेरा नाम लेकर,
रूह ने जब दुआ माँगी, बेबसी भी जाग उठी।

जी गया ‘आर’ मोहब्बत में मगर तन्हा रहा,
याद बनकर फिर से उसकी बेरुख़ी भी जाग उठी।

जी आर कवियूर
22 - 02 -2025

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