तेरे दिल की बातें लबों तक न आईं,
नैनों ने बतायीं, ख़ामोश समझाऊं।
साँसों में बसी है तेरी ही ख़ुशबू,
चाहूँ भी भुला दूँ, कैसे समझाऊं।
तू पास नहीं है, मगर दिल में ज़िंदा,
इस दर्द-ए-जुदाई को कैसे समझाऊं।
अब रात की चादर भी तन्हा लगे है,
तेरी याद कहे है, कैसे समझाऊं।
आँखों से बरसती रही ख़ामोशी,
दिल रो के जो बोला, कैसे समझाऊं।
बेजान पड़ा हूँ मैं अश्कों के तले,
अपनी ही तबाही को कैसे समझाऊं।
"जी आर" ने चाहा तुझे जान से भी,
तूने नहीं जाना, कैसे समझाऊं।
जी आर कवियूर
07 -02 -2025
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