Saturday, March 1, 2025

"इश्क़ का हिसाब" (ग़ज़ल)

"इश्क़ का हिसाब" (ग़ज़ल)


मुझे दिल्लगी का जवाब मिल गया है,
तेरी आँखों की झलक से मिल गया है।

तेरी जुल्फ़ों की घनी छाँव में बैठे,
इश्क़ का सारा अज़ाब मिल गया है।

हमने चाहा था उजाला दिल में लाएँ,
पर तेरा ग़म ही शबाब मिल गया है।

हर तमन्ना को लफ़्ज़ों में ढाल डाला,
फिर भी तेरा इक ख्वाब मिल गया है।

जो छुपा रक्खा था सबसे, एक अरसे से,
तेरी आँखों में वो राज़ मिल गया है।

‘जी आर’ अब तो शिकायत भी क्या करें,
जो मुक़द्दर था, हिसाब मिल गया है।

जी आर कवियूर
02 - 03 -2025

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