जाने क्यों दिल में तेरा ही नाम ठहरा है,
हर एक लफ्ज़ में तेरा ही पैग़ाम ठहरा है।
तेरी यादों की महक से घर महकता है,
गुज़रे लम्हों का अब तक एहतराम ठहरा है।
चंद बातों में बयां कैसे करूँ हाल-ए-दिल,
दर्द गहरा है मगर वो भी खामोश ठहरा है।
तेरी आँखों की जुबां अब भी बुलाती है,
रात भर जाग के तेरा सलाम ठहरा है।
मुद्दतों बाद भी आँखें तुझको ढूंढेंगी,
इश्क़ का दर्द अब भी तेरे नाम ठहरा है।
अपने अश्कों में बहा दीं सब शिकायतें,
"जी आर" फिर भी तेरा ही गुलाम ठहरा है।
जी आर कवियूर
03 - 03 -2025
No comments:
Post a Comment