आज तुम मुझको अजनबी कहते थे,
कल तलक तुम तो हमनशीं कहते थे।
दिल की बस्ती उजड़ गई चुपचाप,
क्यों मुझे फिर वही ज़मीं कहते थे?
राह तकती रहीं वही आँखें,
जिनको तुम जादू-बयाँ कहते थे।
बेवफ़ाई की भी हदें होती हैं,
कब तलक मुझको बेगुनहां कहते थे?
हमसे नज़रों को क्यों चुराते हो,
कल तलक तुम तो बेख़ुदी कहते थे।
अब "जी आर" भी चुप ही रहता है,
जिनको अपना वो आख़िरी कहते थे।
जी आर कवियूर
21 - 03 -2025
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