प्रकृति से
प्रकृति तुझे सुंदर बनाया
किसने तुझे बादलों की चुनरी ओढ़ाई?
फिर क्यों आँसू बहाती है?
फूलों का श्रृंगार नहीं मिला क्या?
चाँदी-सी बहती नदियाँ,
तुझे निस्वार्थ रूप में दी गईं।
दिन में किलकारी भरते फूल,
बादल तुझे सांत्वना देने आए।
देखो, काली घटाएँ मुस्कुरा रही हैं,
पक्षियों के गीत तुझे सहला रहे हैं।
फिर क्यों दिन छाया बन जाता है?
रात के अंत में अंगारों-सा ताप क्यों?
क्या चाँदनी तेरा मधुर हँसी बनती है?
क्या सपनों में छलावा समाया है?
क्या निराशा ने हदें पार कर दीं?
समुद्र की गरज में छिपता है तेरा दर्द?
तेरा प्रेम कभी बदलेगा नहीं,
तेरी खामोशी में कितनी कहानियाँ हैं!
सबसे ऊपर तू माँ ही तो है,
फिर कवि को भी ऐसा क्यों लगा?
जी आर कवियूर
07 - 03 -2025
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