ग़मों ने बांट लिया तेरी यादों का सिलसिला,
गुस्ताखियों ने फिर छेड़ा तेरी यादों का सिलसिला।
सफ़र में राहें भटकती रहीं तमन्नाओं की,
मगर न टूटा कभी दर्द-ए-दिल का सिलसिला।
नज़र से गिर गए सब झूठे सपने तेरे,
बचा रहा तो बस एक वफ़ा का सिलसिला।
जो बात दिल में थी, होंठों पे आ न सकी,
सुलग रहा है अभी तक ख़ामोशी का सिलसिला।
चले थे छोड़ के जिस मोड़ पर मुझे तुम,
वहीं खड़ा है अब भी इंतज़ार का सिलसिला।
क़लम से अश्क टपकते रहे, ग़ज़ल बनती गई,
जी आर ने यूँ लिखा अपने ग़म का सिलसिला।
जी आर कवियूर
10 - 03 -2025
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