तू ना होती तो क्या ग़म होती,
हर लम्हा यादों की परछाई होती।
ज़िंदगी वीरान गलियों सी लगती,
हर तरफ़ तन्हाइयों की शहनाई होती।
तेरे बिना ये बहारें भी सूनी,
फूल खिलते मगर रुसवाई होती।
चाँद भी चुपके से रोता समुंदर में,
रात काली सी इक गहराई होती।
दिल के आईने में बस तू ही तू है,
वरना तस्वीर भी परछाई होती।
दर्द की धड़कनें गीत बनती मगर,
साज़ में ग़म की आहट समाई होती।
जो कहा भी नहीं, जो सुना भी नहीं,
उन फ़सानों की भरपाई होती।
"जी आर" अश्कों में तेरा नाम लिखता,
हर सदा में तेरी अंगड़ाई होती।
जी आर कवियूर
11 - 03 -2025
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