इंतज़ार था, ग़म का मौसम बहार में
तू ही तू था, दिल के हर इक किनार में
आयी थी तू, मगर एक ख़्वाब बनकर
रह गई बस निगाहों के इंतज़ार में
देखकर भी न देखा तुझे किसी ने
रह गई तू वही अमलतास की छाँव में
एक लफ़्ज़ भी न कहा, दर्द बयां न हुआ
खो गई कोई सदा फिर कहर की मार में
चुप थे लब, मगर आँखें सब कह गईं
डूबती रूह थी तेरी ही यादगार में
जी आर सोचता है, अब कौन अपना
सब खो गया इस बेवफ़ा संसार में
जी आर कवियूर
17 - 03 -2025
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