Sunday, March 30, 2025

ग़ज़ल: ये जीवन एक सफ़र जैसा (ग़ज़ल )

ग़ज़ल: ये जीवन एक सफ़र जैसा (ग़ज़ल )

ये जीवन एक सफ़र जैसा, ना जाने कहाँ उतर जाए,
हर मोड़ पर धूप-छाँव मिले, कोई कब तक ठहर जाए।

जो आया है, वो जाएगा, यही तो नियम है संसार का,
फिर क्यों ये झूठी आस रखे, कि कोई सदा संवर जाए।

रंग-महल भी मिट जाते हैं, और कच्चे घर भी ढहते हैं,
जो अपनी पहचान भूल गया, वो कैसे खुद से गुज़र जाए।

कोई हंसे, कोई रो ले, ये खेल अजब सा लगता है,
जो सुख-दुख को समझ सके, वो दुनिया से पार जाए।

मिट्टी से हम सब जुड़े हुए, ये धरती सबसे प्यारी है,
जो जन्म मिला इस जग में हमें, वो किस्मत से ही हमारी है।

"जी आर" बस इतना कहे, ये मेला बस कुछ पल का है,
जो सच्ची राह पकड़ लेगा, वो रोशनी में निखर जाए।


जी आर कवियुर 

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