Tuesday, March 18, 2025

तेरी महक, मेरा अफ़साना

तेरी महक, मेरा अफ़साना 

तेरे आँगन में मैं तुलसी की महक बन जाऊँ,
तेरी ज़ुल्फ़ों में मैं गजरे की चमक बन जाऊँ।

तेरी आँखों में जो अश्कों की लकीरें दिखीं,
मैं दुआ बन के उन्हीं अश्कों में ढलता जाऊँ।

जो जुदाई भी मिले, हँस के गले लग जाए,
तेरी यादों में मैं हर दर्द पिघलता जाऊँ।

तेरी बाहों में मिले मुझको अंतिम विश्राम,
तेरी धड़कन में मैं इक लय सा मचलता जाऊँ।

तेरी दुनिया में रहूँ फूल की ख़ुशबू बनकर,
हर किसी दिल में मैं एहसास सा चलता जाऊँ।

मेरी ग़ज़लों में तेरा ज़िक्र रहेगा 'जी आर',
तेरी महफ़िल में मैं अफ़साना बिखरता जाऊँ।

जी आर कवियूर
19 - 03 -2025

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