जान लो, ये पत्थर नहीं, धड़कता हुआ है,
सीने में बसा दिल, तड़पता हुआ है।
यादों की लपट से ये जलता रहा है,
ख़्वाबों में भी हर पल सिसकता हुआ है।
मौसम भी समझता है आहों की गर्मी,
बादल भी मेरे संग बरसता हुआ है।
तन्हाई के साए में रोता है कोई,
हर दर्द का रिश्ता पिघलता हुआ है।
तू दूर सही, पर ये मन मानता क्या,
हर रोज़ तेरा नाम लिखता हुआ है।
पूछो न 'जी आर' ये हालत मेरी अब,
आईना भी चेहरा झिझकता हुआ है।
जी आर कवियूर
07 - 03 -2025
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