जल पर छिड़ी जंग, वायु हुई विकल,
धरती का कण-कण हो रहा निष्फल।
नदियाँ सूख रहीं, नभ में धुआँ,
कहाँ से लाएँ अब शुद्ध समाँ?
पेड़ों को काटा, नदियों को रोका,
मानव ने खुद को संकट में झोंका।
स्वच्छ हवा और निर्मल जल,
बिन इनके जीवन असंभव कल।
अब भी समय है, चेत जाना,
प्रकृति का मान फिर लौटाना।
संयम रखो, प्रदूषण घटाओ,
जल और वायु को निर्मल बनाओ।
जी आर कवियुर
23- 03 -2025
No comments:
Post a Comment