Wednesday, March 5, 2025

"यादों के साज़" (ग़ज़ल)

"यादों के साज़" (ग़ज़ल)

भीगे होठों पे लालिमा उतारे,
दिल की गहराई में याद उतारे।

तेरी आँखों में जो नमी दिखी थी,
वो मेरे दिल का सुकून उतारे।

रात भर चाँदनी रही बेकरार,
तेरी राहों में जुगनू उतारे।

दिल की बस्ती में अब सन्नाटा है,
तू जो बोले तो साज़ उतारे।

तेरी ज़ुल्फ़ों की लहर भी एक ग़ज़ल,
तेरी आँखों की नर्मी उतारे।

अब 'जी आर' से क्या कहें वो बात,
जो हमारी ख़ामोशी उतारे।


जी आर कवियूर
05 - 03 -2025

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