Monday, March 31, 2025

"यादों के साए में" (ग़ज़ल)

"यादों के साए में" (ग़ज़ल)

जीने की कोई वजह ढूंढ़ता हूँ,
यादों के साए में घर ढूंढ़ता हूँ।

रातों की चादर में तनहाइयाँ हैं,
ख़्वाबों में तेरा असर ढूंढ़ता हूँ।

जिस मोड़ पर तुमने छोड़ा था मुझको,
अब भी वहीं वो सफ़र ढूंढ़ता हूँ।

आईने में ख़ुद से मिल तो रहा हूँ,
लेकिन वहीं पुराना बशर ढूंढ़ता हूँ।

दिल की उदासी को समझेगा कौन,
हर दर्द का हमसफ़र ढूंढ़ता हूँ।

"जी आर" क़िस्मत की ये मेहरबानी,
सूने मकानों में दर ढूंढ़ता हूँ।

जी आर कवियुर 
01- 04 -2025

Sunday, March 30, 2025

ग़ज़ल: ये जीवन एक सफ़र जैसा (ग़ज़ल )

ग़ज़ल: ये जीवन एक सफ़र जैसा (ग़ज़ल )

ये जीवन एक सफ़र जैसा, ना जाने कहाँ उतर जाए,
हर मोड़ पर धूप-छाँव मिले, कोई कब तक ठहर जाए।

जो आया है, वो जाएगा, यही तो नियम है संसार का,
फिर क्यों ये झूठी आस रखे, कि कोई सदा संवर जाए।

रंग-महल भी मिट जाते हैं, और कच्चे घर भी ढहते हैं,
जो अपनी पहचान भूल गया, वो कैसे खुद से गुज़र जाए।

कोई हंसे, कोई रो ले, ये खेल अजब सा लगता है,
जो सुख-दुख को समझ सके, वो दुनिया से पार जाए।

मिट्टी से हम सब जुड़े हुए, ये धरती सबसे प्यारी है,
जो जन्म मिला इस जग में हमें, वो किस्मत से ही हमारी है।

"जी आर" बस इतना कहे, ये मेला बस कुछ पल का है,
जो सच्ची राह पकड़ लेगा, वो रोशनी में निखर जाए।


जी आर कवियुर 

Tuesday, March 25, 2025

"तू ही तू" (ग़ज़ल)

"तू ही तू" (ग़ज़ल)

इश्क़ की फ़रियाद में तू ही तू हो,
हर बीती हुई याद में तू ही तू हो।

तेरी वो भीगी छुअन गालों पे अब तक,
अब भी दिल में ठंडक सी रखती है तू हो।

जो लब पे दुआ थी, जो अश्कों में थी,
वो पहली मुहब्बत की राहत थी तू हो।

हर एक मंजर में खुशबू बसी तेरी,
जो बीत भी जाए, हकीकत थी तू हो।

तन्हाइयों में जागी हैं आँखें मेरी,
रातों में अब भी सिसकती है तू हो।

'जी आर' की ग़ज़लों में हर इक जगह,
हर शेर, हर नज़्म, हर दास्तान में तू हो।


जी आर कवियुर 
25 - 03 -2025

Sunday, March 23, 2025

जल और वायु का युद्ध

जल और वायु का युद्ध

जल पर छिड़ी जंग, वायु हुई विकल,
धरती का कण-कण हो रहा निष्फल।

नदियाँ सूख रहीं, नभ में धुआँ,
कहाँ से लाएँ अब शुद्ध समाँ?

पेड़ों को काटा, नदियों को रोका,
मानव ने खुद को संकट में झोंका।

स्वच्छ हवा और निर्मल जल,
बिन इनके जीवन असंभव कल।

अब भी समय है, चेत जाना,
प्रकृति का मान फिर लौटाना।

संयम रखो, प्रदूषण घटाओ,
जल और वायु को निर्मल बनाओ।

जी आर कवियुर 
23- 03 -2025

Friday, March 21, 2025

सच्चा नसीब (सूफी ग़ज़ल)

सच्चा नसीब (सूफी ग़ज़ल)

ये जीवन उसी की देन बन गया,
हर पल में बस उसकी छाँव बन गया।

जो आया यहाँ, फिर चला जाएगा,
यह सच भी उसकी पहचान बन गया।

वो चाहे तो पत्थर को सोना करे,
हर पल उसी का वरदान बन गया।

कभी रोशनी, तो कभी धूप-छाँव,
हर रूप में उसका दर्शन बन गया।

'जी आर' जो भी लिखता यहाँ,
वो शब्द भी उसकी पूजा बन गया।

जी आर कवियुर 
22 - 03 -2025

शायरी और मोहब्बत ( ग़ज़ल)

शायरी और मोहब्बत ( ग़ज़ल)

शायरी भी मोहब्बत की सूरत लगी,
हर किसी को यह दिल की हकीकत लगी।

एक आवाज़ में भाव मिलते गए,
बात छोटी थी पर इक कहानी लगी।

प्रेम की बात जब शब्दों में ढली,
हर पंक्ति मुझे अपनी विरासत लगी।

मैंने पूछा इन पंक्तियों से, "तू कौन है?"
मुझको खुद की ही कोई चालाकी लगी।

तेरी यादों ने जब भी सहारा दिया,
हर कविता में बस तेरी मस्ती लगी।

'जी आर' जो भी लिखा भावनाओं से,
वह प्रेम की मीठी इबादत लगी।

जी आर कवियुर 
22 - 03 -2025

दिल से निकली बात (ग़ज़ल)

दिल से निकली बात (ग़ज़ल)

दिल से निकली जो बात, असर कर गई,
तेरे दिल तक गई, दिल में घर कर गई।

शेर कहने लगे जब लबों से कभी,
तेरी आँखों में वो ख़ुशबू भर गई।

इश्क़ की रौशनी से सजी थी ग़ज़ल,
चाँदनी बनके वो हर पहर कर गई।

तूने चाहा नहीं फिर भी सुनता रहा,
शायरी तुझको तुझसे ही डर कर गई।

तेरी यादों ने दिल में जगह जो बनाई,
जिंदगी उन लमहों पे फ़िदा कर गई।

'जी आर' जो भी लफ़्ज़ों में ढलता गया,
एक नज़्मों की दुनिया बसर कर गई।

जी आर कवियुर 
22 - 03 -2025

यादों की खुशबू (ग़ज़ल )

 यादों की खुशबू ( ग़ज़ल )

तेरी आँखों की चमक ने चौंका दिया,
तेरे गालों की लाली ने शरमा दिया।

तेरी यादों की खुशबू ने बहला दिया,
तेरी आवाज़ की लय ने तरसा दिया।

तेरी राहों में जो फूल बिछते रहे,
उनको मौसम की आंधी ने रुला दिया।

दिल में बसते थे जो ख़्वाब तेरे लिए,
उनको तन्हाईयों ने ही ढा दिया।

तेरी चाहत में जो रोशन थे रास्ते,
उन कहानियों को अब वक़्त ने मिटा दिया।

'जी आर' इश्क़ में क्या मिला देख लो,
एक आँसू ने सब कुछ बहा दिया।

जी आर कवियूर
22 - 03 -2025

Thursday, March 20, 2025

अजनबी कहते थे (ग़ज़ल)

अजनबी कहते थे (ग़ज़ल)

आज तुम मुझको अजनबी कहते थे,
कल तलक तुम तो हमनशीं कहते थे।

दिल की बस्ती उजड़ गई चुपचाप,
क्यों मुझे फिर वही ज़मीं कहते थे?

राह तकती रहीं वही आँखें,
जिनको तुम जादू-बयाँ कहते थे।

बेवफ़ाई की भी हदें होती हैं,
कब तलक मुझको बेगुनहां कहते थे?

हमसे नज़रों को क्यों चुराते हो,
कल तलक तुम तो बेख़ुदी कहते थे।

अब "जी आर" भी चुप ही रहता है,
जिनको अपना वो आख़िरी कहते थे।

जी आर कवियूर
21 - 03 -2025

Tuesday, March 18, 2025

मोहब्बत की खुशबू

मोहब्बत की खुशबू 

शायरी का यह समंदर यूँ ही लहराता रहे,
हर लफ़्ज़ में आपकी मोहब्बत झलकती रहे।

दिल की गलियों में बसें ख़्वाब हज़ारों ऐसे,
हर सुबह प्यार की ख़ुशबू से महकती रहे।

जो भी गुज़रे तेरी महफ़िल से, संवर जाए वो,
तेरी बातों की मिठास रूह में बसती रहे।

तेरी आवाज़ में जादू है, असर ऐसा है,
बिन कहे भी तेरी हर बात समझती रहे।

शायरी बन के मेरी साँस में रहती है तू,
पर तुझे ख़ुद ही यह पहचान नहीं होती है।

'जी आर' यूँ ही बिखेरें ये ग़ज़ल की खुशबू,
हर महफ़िल में सदा बात ये चलती रहे।

जी आर कवियूर
19 - 03 -2025

तेरी महक, मेरा अफ़साना

तेरी महक, मेरा अफ़साना 

तेरे आँगन में मैं तुलसी की महक बन जाऊँ,
तेरी ज़ुल्फ़ों में मैं गजरे की चमक बन जाऊँ।

तेरी आँखों में जो अश्कों की लकीरें दिखीं,
मैं दुआ बन के उन्हीं अश्कों में ढलता जाऊँ।

जो जुदाई भी मिले, हँस के गले लग जाए,
तेरी यादों में मैं हर दर्द पिघलता जाऊँ।

तेरी बाहों में मिले मुझको अंतिम विश्राम,
तेरी धड़कन में मैं इक लय सा मचलता जाऊँ।

तेरी दुनिया में रहूँ फूल की ख़ुशबू बनकर,
हर किसी दिल में मैं एहसास सा चलता जाऊँ।

मेरी ग़ज़लों में तेरा ज़िक्र रहेगा 'जी आर',
तेरी महफ़िल में मैं अफ़साना बिखरता जाऊँ।

जी आर कवियूर
19 - 03 -2025

Monday, March 17, 2025

मिटती नहीं तेरी यादें ( ग़ज़ल )

मिटती नहीं तेरी यादें ( ग़ज़ल )

तेरी आँखों में ठहरी हैं यादें,
तेरी साँसों में बिखरी हैं यादें।

वो लम्हे जो तुझसे जुड़े थे कभी,
आज तक दिल में ज़िंदा हैं यादें।

ख़यालों में तेरा ही चेहरा रहा,
भूल कर भी न मिटती ये यादें।

तेरी हँसी इक महकती हवा थी,
जो बसी दिल में बनकर के यादें।

कभी चाँदनी में जो खिलती रहीं,
अब अंधेरों में सिमटी हैं यादें।

जी आर की ग़ज़लों में तेरा ही ज़िक्र,
लफ़्ज़ बनकर ये बहती हैं यादें।

जी आर कवियूर
18 - 03 -2025


इंतज़ार की छाँव (ग़ज़ल)

इंतज़ार की छाँव (ग़ज़ल)

इंतज़ार था, ग़म का मौसम बहार में
तू ही तू था, दिल के हर इक किनार में

आयी थी तू, मगर एक ख़्वाब बनकर
रह गई बस निगाहों के इंतज़ार में

देखकर भी न देखा तुझे किसी ने
रह गई तू वही अमलतास की छाँव में

एक लफ़्ज़ भी न कहा, दर्द बयां न हुआ
खो गई कोई सदा फिर कहर की मार में

चुप थे लब, मगर आँखें सब कह गईं
डूबती रूह थी तेरी ही यादगार में

जी आर सोचता है, अब कौन अपना
सब खो गया इस बेवफ़ा संसार में

जी आर कवियूर
17 - 03 -2025

Saturday, March 15, 2025

तेरी मौजूदगी (ग़ज़ल)

तेरी मौजूदगी (ग़ज़ल)

तेरी ख़ामोशी मुझको बेहद बेचैन करती है,
तेरी आँखों की चमक भी बेचैन करती है।

तेरी सूरत मेरी तसवीर में ख़्वाब बुनती है,
दूर रहकर भी तू मुझको बेचैन करती है।

पंछी भी गाते हैं मगर दिल को सुकून नहीं,
बसंत की हवा तक मुझको बेचैन करती है।

फूल सारे शाख़ों से गिरकर बिखर गए,
बस तेरी याद ही मुझको बेचैन करती है।

लब अगर चुप रहें, क्या दिल भी छुप सकता है?
तेरी मौजूदगी हर पल बेचैन करती है।

मेरी ग़ज़लें भी तेरी आवाज़ को ढूँढें सनम,
"जी आर" को हर धुन अब बेचैन करती है।

जी आर कवियूर
16 - 03 -2025

Thursday, March 13, 2025

जब तूने..."(ग़ज़ल)""

जब तूने..."(ग़ज़ल)

""नींव तन्हाइयों की रखी जब तूने,
ख़्वाब आँखों में सिमट गए जब तूने...

कल जो दस्तक थी सपनों की चौखट पर,
दर खुला भी नहीं, खो गया जब तू...

कभी खुशबू थी, कभी अफ़साना था,
हर लम्हा कुछ कह गया जब तू...

हवा की तरहा छू लिया जब तूने,
दिल भी धड़क के रह गया जब तू...

पातिरातों में ग़ज़ल गूंज उठी,
सावन बरस के चल गया जब तू...

"जी आर" की तन्हाइयाँ भी मिट जातीं,
अगर एक बार मुस्कुरा दिया तू...


जी आर कवियूर
 14 - 03 -2025

होली आई रे, होली आई रे

होली आई रे, होली आई रे

रंगों की बौछार चली,
गुलाल की रंगत खिली।
संगीत बजे, ढोल मचाए,
मन में खुशियाँ झूम के आए।

होली आई रे, होली आई रे

गुजिया की मिठास घुले,
हर घर में उल्लास फूले।
छोड़ो सारे गिले-शिकवे,
मिलकर बोलो प्रेम के निक्षे।

होली आई रे, होली आई रे

टेसू के रंग घुल जाएं,
पिचकारी से प्रीत बरसाएं।
भंग की मस्ती, हँसी-ठिठोली,
हर दिल गाए, "आई होली!"

जी आर कवियूर
 13 - 03 -2025

Monday, March 10, 2025

अगर तू न होती" (ग़ज़ल)

अगर तू न होती" (ग़ज़ल)

अगर तू न होती तो नग़मा न होता,
ख़यालों में उपवन महकता न होता।

बहारों के रंगों में जादू न रहता,
हवा का तराना मचलता न होता।

तेरी याद के साथ कोयल जो गाती,
वो सुर मन के तारों में बसता न होता।

जो तेरा हँसना उजाला न देता,
तो चंदा का चेहरा दमकता न होता।

ख़ुशी के बहाने भी कम हो गए थे,
अगर तेरा आँचल सिमटता न होता।

तेरे प्रेम में जो उजाले मिले हैं,
वो मन का दर्पण संवरता न होता।

"जी आर" के शब्दों में तेरा ही जादू,
अगर तू न होती तो ग़ज़ल भी न होती।

जी आर कवियूर
 11 - 03 -2025

"तेरी यादों की परछाई" (ग़ज़ल)

"तेरी यादों की परछाई" (ग़ज़ल)

तू ना होती तो क्या ग़म होती,
हर लम्हा यादों की परछाई होती।

ज़िंदगी वीरान गलियों सी लगती,
हर तरफ़ तन्हाइयों की शहनाई होती।

तेरे बिना ये बहारें भी सूनी,
फूल खिलते मगर रुसवाई होती।

चाँद भी चुपके से रोता समुंदर में,
रात काली सी इक गहराई होती।

दिल के आईने में बस तू ही तू है,
वरना तस्वीर भी परछाई होती।

दर्द की धड़कनें गीत बनती मगर,
साज़ में ग़म की आहट समाई होती।

जो कहा भी नहीं, जो सुना भी नहीं,
उन फ़सानों की भरपाई होती।

"जी आर" अश्कों में तेरा नाम लिखता,
हर सदा में तेरी अंगड़ाई होती।

जी आर कवियूर
 11 - 03 -2025

यादों का सिलसिला (ग़ज़ल)

यादों का सिलसिला (ग़ज़ल)

ग़मों ने बांट लिया तेरी यादों का सिलसिला,
गुस्ताखियों ने फिर छेड़ा तेरी यादों का सिलसिला।

सफ़र में राहें भटकती रहीं तमन्नाओं की,
मगर न टूटा कभी दर्द-ए-दिल का सिलसिला।

नज़र से गिर गए सब झूठे सपने तेरे,
बचा रहा तो बस एक वफ़ा का सिलसिला।

जो बात दिल में थी, होंठों पे आ न सकी,
सुलग रहा है अभी तक ख़ामोशी का सिलसिला।

चले थे छोड़ के जिस मोड़ पर मुझे तुम,
वहीं खड़ा है अब भी इंतज़ार का सिलसिला।

क़लम से अश्क टपकते रहे, ग़ज़ल बनती गई,
जी आर ने यूँ लिखा अपने ग़म का सिलसिला।

जी आर कवियूर
 10 - 03 -2025

Saturday, March 8, 2025

ये हँसी किसके लिए (ग़ज़ल)

ये हँसी किसके लिए (ग़ज़ल)

तेरे होंठों के पीछे छुपी ये हँसी किसके लिए
चमकते सितारे ये आँखों में किसके लिए

बहारें भी आईं, मगर दिल में ख़ुशबू नहीं
बहारों का ये रंग-ओ-रौनक़ है किसके लिए

तेरी याद में रातें जलाकर गुज़ारीं मगर
ये बुझते दिए, राख़ होती लौ किसके लिए

कभी ख़्वाब बनकर बसी नैन में जो हसीं
वो चाहत की दुनिया बसी थी ये किसके लिए

नज़र चुप थी, लब भी ख़ामोश थे इस क़दर
मगर दिल में उठती सदा थी ये किसके लिए

जी आर ने लिखी ग़ज़ल प्यार में डूब कर
मगर ये सुनाने की हसरत है किसके लिए

जी आर कवियूर
09 - 03 -2025

Friday, March 7, 2025

ग़ज़ल - तुझको बसाया है

ग़ज़ल - तुझको बसाया है

तुझको सीने में बसाया है,
हर सांस में तुझे बसाया है।

तेरी खुशबू से महकती राहें,
इस दिल में तुझे बसाया है।

तेरी यादों में कटती रातें,
हर लम्हा तुझे बसाया है।

बिन तेरे हर खुशी अधूरी,
ग़म में भी तुझे बसाया है।

तेरी छवि है मेरे मन में,
हर ख्वाब में तुझे बसाया है।

तेरी चाहत का असर देखो,
"जी आर" ने तुझे बसाया है।

जी आर कवियूर
08 - 03 -2025

विश्व महिला दिवस

विश्व महिला दिवस

तारों जैसी जो चमकती है,
कल को नई राहें देती है।
प्यार से जो जीवन महकाती,
दुनिया को रोशनी दिखाती।

माँ बनकर ममता बरसाए,
बहन बनकर साथ निभाए।
संगिनी बन हाथ पकड़ ले,
हर मुश्किल में राह दिखाए।

धरती पर जो बीज लगाती,
सपनों को सच्चाई बनाती।
प्रकृति के सुर में सुर मिलाकर,
नई रोशनी दुनिया में लाती।

उसके बिना जग सूना होगा?
प्यार, दया, सहारा जो दे,
महिला दिवस पर प्रणाम करें,
उसके उपहार को मान दें!

जी आर कवियूर
08 - 03 -2025

ग़ज़ल: मिल गया

ग़ज़ल: मिल गया

ज़िंदगी की राह में मिल गया,
जीने का सबब हमें मिल गया।

ग़म के अंधेरों में रोशन हुआ,
जो तेरा दीया था, वो मिल गया।

साथ चलने का वादा किया,
दिल को सुकून तेरा मिल गया।

बिछड़े थे हम जो किसी मोड़ पर,
फिर से वहीं रास्ता मिल गया।

ख़्वाबों में तेरा जो चेहरा मिला,
दिल को सजीव लम्हा मिल गया।

'जी आर' को अब कोई ग़म नहीं,
तेरी यादों में जहाँ मिल गया।

जी आर कवियूर
08 - 03 -2025

Thursday, March 6, 2025

धड़कता हुआ एहसास (ग़ज़ल )

धड़कता हुआ एहसास (ग़ज़ल )

जान लो, ये पत्थर नहीं, धड़कता हुआ है,
सीने में बसा दिल, तड़पता हुआ है।

यादों की लपट से ये जलता रहा है,
ख़्वाबों में भी हर पल सिसकता हुआ है।

मौसम भी समझता है आहों की गर्मी,
बादल भी मेरे संग बरसता हुआ है।

तन्हाई के साए में रोता है कोई,
हर दर्द का रिश्ता पिघलता हुआ है।

तू दूर सही, पर ये मन मानता क्या,
हर रोज़ तेरा नाम लिखता हुआ है।

पूछो न 'जी आर' ये हालत मेरी अब,
आईना भी चेहरा झिझकता हुआ है।

जी आर कवियूर
07 - 03 -2025

प्रकृति से



प्रकृति से  

प्रकृति तुझे सुंदर बनाया
किसने तुझे बादलों की चुनरी ओढ़ाई?
फिर क्यों आँसू बहाती है?
फूलों का श्रृंगार नहीं मिला क्या?

चाँदी-सी बहती नदियाँ,
तुझे निस्वार्थ रूप में दी गईं।
दिन में किलकारी भरते फूल,
बादल तुझे सांत्वना देने आए।

देखो, काली घटाएँ मुस्कुरा रही हैं,
पक्षियों के गीत तुझे सहला रहे हैं।
फिर क्यों दिन छाया बन जाता है?
रात के अंत में अंगारों-सा ताप क्यों?

क्या चाँदनी तेरा मधुर हँसी बनती है?
क्या सपनों में छलावा समाया है?
क्या निराशा ने हदें पार कर दीं?
समुद्र की गरज में छिपता है तेरा दर्द?

तेरा प्रेम कभी बदलेगा नहीं,
तेरी खामोशी में कितनी कहानियाँ हैं!
सबसे ऊपर तू माँ ही तो है,
फिर कवि को भी ऐसा क्यों लगा?

जी आर कवियूर
07 - 03 -2025



Wednesday, March 5, 2025

"यादों के साज़" (ग़ज़ल)

"यादों के साज़" (ग़ज़ल)

भीगे होठों पे लालिमा उतारे,
दिल की गहराई में याद उतारे।

तेरी आँखों में जो नमी दिखी थी,
वो मेरे दिल का सुकून उतारे।

रात भर चाँदनी रही बेकरार,
तेरी राहों में जुगनू उतारे।

दिल की बस्ती में अब सन्नाटा है,
तू जो बोले तो साज़ उतारे।

तेरी ज़ुल्फ़ों की लहर भी एक ग़ज़ल,
तेरी आँखों की नर्मी उतारे।

अब 'जी आर' से क्या कहें वो बात,
जो हमारी ख़ामोशी उतारे।


जी आर कवियूर
05 - 03 -2025

"सावन और साजन" (ग़ज़ल)

"सावन और साजन" (ग़ज़ल)

सावन को ज़रा आने दो,
साजन दिल बहलाने दो।

बादल को बरस जाने दो,
प्यासे मन को भीग जाने दो।

यादों की घटा छाई है,
आँखों को भी नम जाने दो।

धड़कन में जो लय छेड़ी है,
उस धुन को मचल जाने दो।

छू लेने दो भीगी ख़ुशबू,
सांसों में उतर जाने दो।

"जी आर" ने जो अरमान सहेजे,
उस प्यार को पल आने दो।

जी आर कवियूर
05 - 03 -2025

Monday, March 3, 2025

ग़ज़ल: तेरा ही नाम ठहरा है

ग़ज़ल: तेरा ही नाम ठहरा है

जाने क्यों दिल में तेरा ही नाम ठहरा है,
हर एक लफ्ज़ में तेरा ही पैग़ाम ठहरा है।

तेरी यादों की महक से घर महकता है,
गुज़रे लम्हों का अब तक एहतराम ठहरा है।

चंद बातों में बयां कैसे करूँ हाल-ए-दिल,
दर्द गहरा है मगर वो भी खामोश ठहरा है।

तेरी आँखों की जुबां अब भी बुलाती है,
रात भर जाग के तेरा सलाम ठहरा है।

मुद्दतों बाद भी आँखें तुझको ढूंढेंगी,
इश्क़ का दर्द अब भी तेरे नाम ठहरा है।

अपने अश्कों में बहा दीं सब शिकायतें,
"जी आर" फिर भी तेरा ही गुलाम ठहरा है।

जी आर कवियूर
03 - 03 -2025

Saturday, March 1, 2025

यीशु तेरा नाम मीठा लगे ("प्रभु आराधना गीत")

यीशु तेरा नाम मीठा लगे ("प्रभु आराधना गीत")

यीशु तेरा नाम मीठा लगे,
हर पल दिल में बसा रहे।
तेरी महिमा गाऊँ सदा,
तेरे चरणों में झुका रहे॥

तूने हमें प्रेम दिया,
पापों से हमें छुड़ा लिया।
तेरी राह में चलूँ सदा,
तेरे संग जीवन बिता लिया॥

तेरा प्यार अटल, अमर रहे,
तेरी ज्योति हमें राह दिखाए।
हर सुबह तेरा धन्यवाद करूँ,
हर शाम तुझे गीत सुनाए॥

जी आर कवियूर
02 - 03 -2025

"इश्क़ का हिसाब" (ग़ज़ल)

"इश्क़ का हिसाब" (ग़ज़ल)


मुझे दिल्लगी का जवाब मिल गया है,
तेरी आँखों की झलक से मिल गया है।

तेरी जुल्फ़ों की घनी छाँव में बैठे,
इश्क़ का सारा अज़ाब मिल गया है।

हमने चाहा था उजाला दिल में लाएँ,
पर तेरा ग़म ही शबाब मिल गया है।

हर तमन्ना को लफ़्ज़ों में ढाल डाला,
फिर भी तेरा इक ख्वाब मिल गया है।

जो छुपा रक्खा था सबसे, एक अरसे से,
तेरी आँखों में वो राज़ मिल गया है।

‘जी आर’ अब तो शिकायत भी क्या करें,
जो मुक़द्दर था, हिसाब मिल गया है।

जी आर कवियूर
02 - 03 -2025