जीने की कोई वजह ढूंढ़ता हूँ,
यादों के साए में घर ढूंढ़ता हूँ।
रातों की चादर में तनहाइयाँ हैं,
ख़्वाबों में तेरा असर ढूंढ़ता हूँ।
जिस मोड़ पर तुमने छोड़ा था मुझको,
अब भी वहीं वो सफ़र ढूंढ़ता हूँ।
आईने में ख़ुद से मिल तो रहा हूँ,
लेकिन वहीं पुराना बशर ढूंढ़ता हूँ।
दिल की उदासी को समझेगा कौन,
हर दर्द का हमसफ़र ढूंढ़ता हूँ।
"जी आर" क़िस्मत की ये मेहरबानी,
सूने मकानों में दर ढूंढ़ता हूँ।
जी आर कवियुर
01- 04 -2025