क्यों हर बार दूर होते हो तुम। (गजल)
बिना पास आए दूर हो जाना,
तितली की मीठी नोकझोंक सुहाना।
समुद्र के तट पर बिछड़ते हैं हम,
भूमि-चुंबित लहरें गाती हैं ग़ज़ल।
राहों में बिछे फूलों की तरह,
तेरी यादें बसी दिल में सदा।
कभी पास आना, कभी दूर जाना,
यादों का ये सिलसिला है पुराना।
समुद्र की तरह दिल मेरा बहता,
तेरी यादों का साया हर जगह रहता।
तितली के परों में छिपी है खुशी,
तेरे बिना मन में बसी है उदासी।
सपनों की तरह तू आ भी गया,
हकीकत में फिर क्यों न मिला।
दिल के दरिया में उतरते हो तुम,
फिर क्यों हर बार दूर होते हो तुम।
रचना
जी आर कवियूर
05 06 2024
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