Saturday, June 1, 2024

अंजानी बातों में

अंजानी बातों में

रहे कितने ढूंढे मंजिल
दिल खो बैठा
अंजानी बातों में

कभी चाँदनी रातों में, 
कभी यादों की बरसातों में
रहे कितने ढूंढे मंजिल,
 दिल खो बैठा अंजानी बातों में

कभी होश का आलम था, 
कभी ख्वाबों की दुनिया थी
भटके हम फिर दर-दर, 
उन चाहत की सौगातों में

कभी जिक्र था हसरत का,
कभी अरमानों का सिलसिला
खोये हम अपनी ही धुन में, 
उन बीते हुए रातों में

कभी राहें थी सजीव, 
कभी मंजिलें थी दूर
ठोकरें खाई हमने, 
उन अनजानी मुलाकातों में

कभी दर्द का समंदर था,
 कभी खुशियों की लहरें
तैरते रहे हम, 
उस चाहत की बरसातों में

अब समझे जिंदगी को, 
अब पाया खुद को
खोकर पाया हमने, 
उन अंजानी बातों में

रचना 
जी आर कवियूर
02 06 2024


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