आने वाले दिनों की छाया में,
एक कवि लिखता है,
उसके शब्द गुनगुनाते हैं।
भविष्य और वर्तमान के उसके विचार मिश्रित होते हैं,
लेकिन ऐसा लगता है कि प्रसिद्धि नहीं उतरेगी।
वह अपनी पंक्तियों को दिल और ताकत से गढ़ता है,
फिर भी अंधेरे में, वे नज़रों से ओझल हो जाती हैं।
कोई भीड़ जयकार नहीं करेगी, कोई आवाज़ नहीं उठेगी,
उसके विनम्र वाक्यांश का जश्न मनाने के लिए।
लेकिन समय बदलेगा, और वह दिन आएगा,
जब उसके सभी पदचिह्न दिखाई देंगे।
उसके मौन गीत की गूँज,
आखिरकार पाएँगी कि वे कहाँ हैं।
जीआर कवियूर
25 06 2024
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