Tuesday, February 27, 2024

ना लगे इस रोग


ना लगे इस रोग

इश्क का चादर ओढ़
दुनिया से मुंह मोड़
एक दिन मोड पर मिली 
हसीना दिल ले गई

सदियों से चली आई
सर्दि यां धूप छा गया
बेकसूरी की कसौटी पर
छीन गई चैन और निंदिया

ढूंढे उसे चांद तारों पर
केवल पाया सपनों में उसे
यह कोई रोग है क्या
दुनिया में सबको एक बार

लग जाती है यह रोग
भूख नहीं प्यास नहीं
आनाकानी केवल उसके
कहानियों में फड़के मन 

रचना 
जी आर कवियूर
 28 01 2024

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