ना लगे इस रोग
इश्क का चादर ओढ़
दुनिया से मुंह मोड़
एक दिन मोड पर मिली
हसीना दिल ले गई
सदियों से चली आई
सर्दि यां धूप छा गया
बेकसूरी की कसौटी पर
छीन गई चैन और निंदिया
ढूंढे उसे चांद तारों पर
केवल पाया सपनों में उसे
यह कोई रोग है क्या
दुनिया में सबको एक बार
लग जाती है यह रोग
भूख नहीं प्यास नहीं
आनाकानी केवल उसके
कहानियों में फड़के मन
रचना
जी आर कवियूर
28 01 2024
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