उभर आई
जी.आर.कवियूर
पलक छपते ही.
तू कहां चली गई.
शायराना अंदाज
ढूंढता रहा तुझे.
नगमा में पाया
.तेरी नक्शे और कदम.
कलम ने तो पहचान लिया.
तेरी खून भरी.लिखावट.
आंखों में उतर आई.
दिल के द्वारा लबों पर.
तेरी खामोशियां.
इस कदर.महफिल में.उतर गई
लाखों दफा.
मेरे कागज पर.
लिखे और काट दिए.
तेरे नाम.
इतना जो.
दिल पर छा गई.
जैसे.बादल तले.
इंद्र.धनुष की रंगों में.
देख देख कर लिखता रहा
सुनी हुई राहे.
थक गई.नजरें
और नजरl आने.
चांद भी.मुस्कुरा दिए.
मेरे हाल पर.
ठोकरें क्यों खाए.
प्यार के नाम पर.
तन्हाइयों ने.
संवारा.सजाया.
मेरी मन की आरजू.
कविता बनकर उभर आई
13 10 2022
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