आई हंसी तेरे होठों पर देख
चांद समझ बैठ गया
लिखें नगमे तेरे लिए
और मैं क्या कहूं
नासमझ बनकर तूने
मेरे लिखा हुआ
कागज फाड़ दिए
पहुंचे ट्रेस कलेजे में
मगर रूठे हुए तुम्हें
मनाने के लिए
गला फाड़ कर
गाया मैंने गजल
सुनकर लोग गूंज उठे
तालियां से लेकिन
तू तो ना समझ पाई
मेरी प्यार का इजहार
यह ज़ालिम वक्त
कितना बुरा जुलुम हुआ मुझपर
जी आर कवियूर
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