दिल मानता नहीं
आखिर यह बात क्या है
मुझको तो पता नहीं है
कहां चली गई हो
रूठ के तो नहीं गई
दिल में छुपाया हुआ
इश्क को क्या नाम दूं
तुझे पता है क्या
तो बता दो जरा
दिल धड़कता है
प्यासी है गला
मैं और मेरे कलम
थक चुका है तेरे लिए
और कितने पुकारू
ल में कितने बीत चुका है
ना कुछ बन सका
तेरे प्यार के सामने
समझौता करूं किस से
मानता नहीं दिल
जी आर कवियूर
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