संभालो मुझे
कितने फुर्सत में तेरे आंखों को सजाया है
कितनी खामोशियों से तेरी होठों को बनाया है
कितनी प्यार से सवारा है तेरी गालों को
कितनी नाजुक हाथों से छुआ है तेरी हृदय को
हे रब मुझे क्यों इतना सुंदर संवारा नहीं
कुछ तो रहमत होता तो मैं भी आज तुझसे
इतनी शिकायत ना करता
फिर भी तूने जो दिया
जो कुछ से सुकून रहना चाहता हूं
मगर यह सब देख
मुझसे संभाला नहीं जा है
थोड़ा रहम करो
मेरे इस हाल को सुधार दो
आखिर तुम भी एक खुदा हो
जी आर कवियूर
18 02 2023
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